केंद्र सरकार ने जनगणना की तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 2025 में जनगणना की शुरुआत होगी और 2026 में इसके आंकड़े आ जाएंगे।
यह प्रक्रिया लगभग एक साल चलेगी। इस बार की जनगणना में सरकार की ओर से संप्रदाय भी पूछा जाएगा।
अब तक जनगणना में धर्म और वर्ग ही पूछा जाता था, लेकिन इस बार संप्रदाय भी बताना होगा। जातिगत जनगणना की मांग कई विपक्षी दलों और एनडीए के सहयोगी दलों ने भी की है।
इस पर सरकार ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन संप्रदाय पूछने पर सहमति बन गई है।
माना जा रहा है कि संप्रदाय की जानकारी मिलने से एक अलग तरह का आंकड़ा सामने आएगा और इससे राजनीतिक तस्वीर भी बदल सकती है।
जैसे मुस्लिमों में ही सुन्नी, शिया, अहमदी, बोहरा जैसे कई संप्रदाय आते हैं। इसी प्रकार हिंदू समाज में भी अलग-अलग गुरुओं को मानने के चलते संप्रदाय और मान्यताएं अलग हैं।
ऐसे में संप्रदाय की जानकारी लेने से अलग ही डेटा आएगा और उससे जाति से परे ध्रुवीकरण की एक अलग संभावना बनेगी।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जैसे महाराष्ट्र में दलित बौद्ध प्रभावी हैं और राजस्थान एवं हरियाणा जैसे राज्यों में बिश्नोई संप्रदाय का असर है। इसी तरह कई अन्य राज्यों में भी डेरे, संगत, गुरु पंरपरा आदि के आधार पर संप्रदाय हैं।
कबीरपंथी, रविदासी जैसे कई संप्रदायों की बड़ी संख्या
इनमें कबीरपंथी, रविदासी भी शामिल किए जा सकते हैं। इस तरह संप्रदायों के आधार पर भी एक बड़ा आंकड़ा निकलता है। इसलिए सरकार की संप्रदाय पूछने की पहल भी अहम है और राजनीतिक सूरत बदलने की भी इससे संभावना बनती है।
माना जा रहा है कि विपक्ष की जातीय जनगणना की मांग की काट भी एक तरह से इससे करने की कोशिश हो सकती है। बता दें कि जाति जनगणना को लेकर भाजपा सरकार अब तक खुलकर कुछ भी नहीं बोल रही है।
एनडीए में शामिल नीतीश कुमार, चिराग पासवान, चंद्रबाबू नायडू, अनुप्रिया पटेल जैसे नेता जातीय जनगणना की वकालत कर चुके हैं। विपक्षी दल कांग्रेस, सपा, आरजेडी तो इसे लेकर बेहद मुखर हैं।
जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में भी होगा संप्रदाय का असर
फिर भी सरकार इसे लेकर चुप्पी बनाए हुए है। माना जा रहा है कि इसकी काट के लिए ही संप्रदाय पूछने का कॉलम जोड़ने की तैयारी है।
दरअसल यह अहम भी है क्योंकि जम्मू-कश्मीर की ही बात करें तो भले ही घाटी में मुस्लिमों की अच्छी आबादी है, लेकिन उनमें भी भिन्नताएं हैं। सुन्नी, शिया, अहमदी, गुर्जर बकरवाल जैसे अलग-अलग संप्रदाय मुस्लिमों के बीच हैं।
ऐसे में यदि यह जानकारी मिल जाए कि किस संप्रदाय के कितने लोग कहां हैं तो फिर योजनाएं उसके आधार पर तैयार करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा राजनीतिक गोलबंदी पर भी इसका असर दिखेगा और सभी के प्रतिनिधित्व की बात हो सकेगी।