आज यहां पढ़ें करवा चौथ से जुड़ी ये 4 पौराणिक व्रत कथाएं, आपके लिए…

प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):

कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है।

करवा चौथ के व्रत का संबंध करवा माता और गणेश जी से है। साल की गणेश चतुर्थी को गणेश जी पूजन किया जाता है और कार्तिक मास की चतुर्थी बड़ी होती है, इसलिए इस दिन करवा चौथ का व्रत होता है।

इसलिए इस दिन करवा माता और गणेश जी की कहानी पढ़ी जाती है। इस व्रत में कथा सुनने का विधान है। सभी लोग अपने-अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार व्रत कथा सुनते हैं। यह व्रत कथा सुनने के बिना अधूरा है। अगर आप भी करवा चौथ का व्रत कर रही हैं, तो नीचे दी गई इन 4 कथाओं में से एक कथा जरूर सुनें।

इस व्रत कथा में साहूकार की बेटी और गणेश जी कथा प्रमुख है। कुछ लोग धोबिन से जुड़ी कथा भी सुनते हैं। कथा सुनते समय अपने हाथों में चावल रखें और कछा पूरी होने पर इन्हें भगवान को अर्पित कर दें। इसके अलावा कथा सुनाने वाले को दक्षिणा जरूर दें।

किसी के कथा दोपहर 12 बजे के बाद पढ़ी जाती है और किसी के शाम को तारों की छांव में कथा पढ़ने का विधान है। इसके अलावा करवा चौथ पर कथा समाप्त होने पर मन में प्रार्थना करें कि मां जैसे आपने उसके सुहाग की रक्षा करी, वैसे ही हमारी भी सुहाग की रक्षा करना।

यहां पढ़ें साहूकार के सात बेटों और सात बेटियों वाली कथा-

एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे साहूकारनी के साथ उसकी बहुओं और बेटी ने चौथ का व्रत रखा था। चौथ का व्रत में चांद देखकर ही व्रत खोलते है।

रात को जब साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोल सकती है और कुछ खा सकती है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से बहन को दिखाता है, छलनी की ओट में रखा दीपक चांद की तरह लगता है।

ऐसे में वो ऐसा लगता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। बहन ने अपनी भाभी से भी कहा कि चंद्रमा निकल आया है व्रत खोल लें, लेकिन भाभियों ने उसकी बात नहीं मानी और व्रत नहीं खोला।

बहन को अपने भाईयों की चतुराई समझ में नहीं आई और उसे देख कर करवा उसे अर्घ्य देकर खाने का निवाला खा लिया। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।

उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण माता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर वह निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी।

शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही।

उसने पूरे साल की चतुर्थी को व्रत किया और अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो जिसके फलस्वरूप करवा माता और गणेश जी के आशीर्वाद से उसका पति पुनः जीवित हो गया। जैसे गणपति और करवा माता ने उसकी सुनी, वैसे सभी की सुनें, सभी का सुहाग अमर हो।

गणेश जी की अंधी बुढिया माई वाली कहानी

एक अंधी बुढ़िया थी, जिसका एक लड़का और बहू थी। वह बहुत गरीब थी। वह अंधी बुढ़िया माई नित्यप्रतिदिन गणेशजी की पूजा और चौथ का व्रत करती थी। माई की पूजा से प्रसन्न होकर एक दिन गणेशजी भगवान ने उसे दर्शन दिए और बोले कि बुढ़िया माई तू रोज निस्वार्थ भाव से मेरी पूजा करती हैं जो चाहे सो मांग ले।

बुढ़ियामाई बोली हे विध्नहर्ता गणेश जी भगवान मुझे तो मांगना नहीं आता सो क्या मांगू। तब गणेशजी भगवान बोले कि माई मैं कल आऊंगा तू अपने बहू-बेटे से पूछ कर मांग ले। तब बुढ़िया ने अपने बेटे बहू से पूछा तो बेटा बोला कि मां धन मांग ले और बहू ने कहा कि मां पोता मांग लो। बुढ़िया ने सोचा कि बेटा-बहू तो अपने-अपने मतलब की बातें कर रहे हैं।

अतः उस बुढ़िया ने पड़ोसिन से पूछा तो पड़ोसिन ने कहा कि बुढ़िया माई तेरी थोड़ी-सी जिंदगी बची है।तू क्यों तो मांगे धन औरक्यों मांगे पोता, तू तो केवल अपने आंखे मांग ले, जिससे तेरा जीवन सुख से व्यतीत हो जाए। उस बुढ़ियामाई ने बेटे, बहू तथा पड़ोसिन की बात सुनकर घर में जाकर सोचा, जिससे बेटा-बहू भी खुश हो जाए और मेरा भी भला हो वह भी मांग लूं ।

जब दूसरे दिन गणेशजी भगवान आए और बोले, बुढ़िया माई मांग ले |गणेशजी भगवान के वचन सुनकर बुढ़ियामाई बोली हे विघ्नहर्ता , अन्न देवो , धन देवो , निरोगी काया देवों , अमर सुहाग देंवो , दीदा गोढा देवो , सोने के कटोरे में पोते को दूध पीता देखू , अमर सुहाग देवो और समस्त परिवार को सुख देंवो आपके श्री चरणों में मुझे स्थान देवो |

बुढ़िया की बात सुनकर गणेशजी बोले- बुढ़िया मां तूने तो मुझे ठग लिया। और कहती हैं की मांगना नहीं आता , जो कुछ तूने मांग लिया वह सभी तुझे मिलेगा। यूं कहकर गणेशजी भगवान अंतर्ध्यान हो गए। हे गणेशजी भगवान जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसा सबको देना , वैसे ही सबको देना और सभी पर अपनी कृपा बनाये रखना।

इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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