जानें देवी दुर्गा के पंचम स्वरूप का क्यों कहते हैं स्कंदमाता…

प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):

भगवती के स्कंदमाता स्वरूप की उपासना शारदीय नवरात्र की पंचमी तिथि पर विशेष रूप से की जाती है।

देवी के इस स्वरूप की आराधना से जहां व्यक्ति की सद्कामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं उसके मोक्ष का मार्ग भी सुलभ हो जाता है। मां स्कंदमाता स्कंद कुमार भगवान कार्तिकेय की मां हैं।

मां के स्वरूप की बात करें तो स्कंदमाता की गोद में स्कंद देव गोद में बैठे हुए हैं। मां स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान हैं,इस वजह से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है।

मां स्कंदमाता को गौरी, माहेश्वरी, पार्वती एवं उमा नाम से भी जाना जाता है। मां का वाहन सिंह है। मान्यता है कि मां की उपासना करने से संतान की प्राप्ति होती है।

माता स्कंदमाता की पूजा करने से अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोगों को मां स्कंदमाता की सच्चे मन से आराधना करनी चाहिए। ताकि संतान प्राप्ति में आ रही हर बाधा को माता रानी दूर कर दें। 

पुराणों के अनुसार भगवान कार्तिकेय को ‘स्कंद’ नाम से भी जाना जाता है। माता ने अपने गोद में भगवान स्कंद को लिया है इसलिए माता के इस स्वरूप को स्कंदमाता कहते हैं। मां अपने पुत्र से बेहद प्रेम करती है।

मां दुर्गा का यह रूप बेहद दयालु और कोमल हृदय का है।  मां स्कंदमाता की पूजा करने से पहले स्नान कर साफ कपड़े पहन लें।

माता को रोली कुमकुम और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही साथ माता को श्रृंगार का सामान भी चढ़ाएं। नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए इससे बुद्धि और स्मरण शक्ति का विकास होता है।

नवरात्र के पांचवे दिन ललिता पंचमी व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली हर तरह की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।

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