सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस अभय एस ओका शुक्रवार को कोर्टरूम में ही तब एक वादी पर बुरी तरह भड़क गए, जब अदालत ने पाया कि वादी ने अपने दो अपील याचिकाओं और हलफनामे में तथ्यों को गलत मंशा से छुपाया है और उसे उचित भी ठहराया।
वादी की इस हरकत पर जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दोनों याचिकाओं के लिए पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे वादियों के लिए अदालत में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
वादी ने शीर्ष अदालत में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेशों को चुनौती देते हुए दो अलग-अलग एसएलपी दायर की थी।
जस्टिस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अपीलकर्ता ने अपनी दोनों अपीलों में महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया है और 19 पेज का हलफनामा दायर कर उसके साथ 300 पन्नों का दस्तावेज संलग्न कर नए अप्रोच का साहस किया है।
कोर्ट ने कहा कि इससे वादी की मंशा का पता चलता है कि वह तथ्यों को दबाकर अदालत को गुमराह करना चाहता था।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि न्यायाधीशों को आजकल उनके आक्रोश के लिए जाना जा रहा है। इस पर जस्टिस ओका ने कहा, “आप मुझे कोई भी विशेषण दे सकते हैं, मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है।
आप कह सकते हैं कि मैं एक बुरा जज हूं, कठोर जज हूं, मुझे इसकी जरा भी परवाह नहीं है। मैं यहां 20 साल से हूं और इस दौरान मैंने इससे भी बदतर आरोप झेले हैं। आपको जो कहना है कहते रहें।”
इसके बाद जस्टिस ओका ने कहा कि जब तक वादी दस लाख का जुर्माना नहीं जमा करवा देते, तब तक वह इस मामले की सुनवाई नहीं करेंगे।जस्टिस ओका यहीं नहीं रुके।
उन्होंने कहा कि वादी ने 300 से अधिक पृष्ठों का हलफनामा दायर कर और अपने स्वयं के आचरण की व्याख्या करने के बजाय उत्तरदाताओं के खिलाफ आरोप लगाने का इसे अवसर बना लिया। जस्टिस ओका ने कहा, “क़ानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग हुआ है।
जब आपसे अपने आचरण के बारे में स्पष्टीकरण देने की अपेक्षा की जाती है तो आप प्रतिवादी के खिलाफ आरोप लगाने के अवसर का उपयोग करते हैं। आपने कहा कि कोई दमन नहीं है। हम ऐसे वादियों को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे जो इस तरह के हलफनामे दाखिल कर रहे हैं।”