सैयद जावेद हुसैन (सह संपादक – छत्तीसगढ़):
धमतरी- वर्तमान में विलम्ब किस्म की धान फसल गभोट अवस्था में एवं अर्ली किस्म धान में बाली निकल रही है। इसके मद्देनजर उप संचालक कृषि मोनेश साहू ने किसानों को समसामयिक सलाह दी है।
उन्होंने बताया कि इस अवस्था में लगे खरपतवार नियंत्रण के लिए निंदाई का कार्य हाथ से किया जाये, तो बेहतर होगा। हाथ से निंदाई करने पर धान के परागकण को कम नुकसान होता है, बल्कि ज्यादा प्रेशर वाले प्रेयर का इस्तेमाल करने के कारण परागकण के झड़ने की समस्या आती है।
उन्होंने बताया कि अभी खेतों की सतत निगरानी करने की अवश्यकता है, क्योंकि इस अवस्था में तनाछेदक का प्रकोप बालियों पर होता है. जिसे डेडहार्ट कहते है। कीटों की रोकथाम के लिए सबसे पहले जैविक विधि से बने हुए कीटनाशकों का उपयोग करने की सलाह उप संचालक ने दी। उन्होंने बताया कि यदि जैविक विधी से रोकथाम नहीं हो पा रही है, तभी रसायनिक विधी से उपचार करना उचित होता है।
उप संचालक कृषि ने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि धान पर पीला तनाछेदक कीट के वयस्क दिखाई देने पर फसल का निरीक्षण कर तना छेदक के अंडा समूह को एकत्र कर नष्ट कर दें, साथ ही डेड हार्ट, सूखी पत्ती को खींचकर निकाल दे।
तना छेदक की तितली 1 मोथ प्रति वर्ग मीटर में होने पर फिप्रोनिल 5 एससी 1 लीटर प्रति हेक्टे. दर से छिड़काव करें या प्रोफेनोफॉस 40 ई.सी. एवं सायपरमेथ्रीन 5 ई.सी. की कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए या तनाछेदक कीट के लिए बाइफेनथिन 10 ईसी का 350 एमएल प्रति एकड़ या क्लोरेनट्रनिलीप्रोल का 60 एमएल प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करने से रोकथाम किया जा सकता है।
पत्तीमोड़क, चितरी की 1 से 2 पत्ती प्रति पौधा होने पर फिप्रोनिल 5 एससी 800 मिली प्रति हेक्टे, की दर से छिड़काव करें। मौसम साफ रहने पर कीटनाशक दवाई का छिड़काव करें एवं पूरे सुरक्षा उपाये को भी अपनाये। धान की फसल में झुलसा रोग होने पर ब्लास्ट के प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्ती हल्के बैगनी रंग के धब्बे पड़ते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख या नाव के समान बीच में चौड़े एवं किनारों में सकरे हो जाते हैं।
इन धब्बों के बीच का रंग हल्के भूरे रंग का होता है। इसके नियंत्रण के लिए टेबूकोनाजोल 750 मि.ली. प्रति हेक्टे. 500 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें या प्रोपिकोनाजोल का 250 एमएल प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से नियंत्रित होता है।
जिले में चूहे का प्रकोप भी व्यापक रूप से हो रहा है, जिसके रोकथाम के लिए बिलों में फयूमिगेन्ट कीटनाशकों का उपयोग कर बिल के मुंह को बंद कर देना चाहिए। उप संचालक ने कृषकों को सलाह दी है कि खेतों की सतत निगरानी करें व लक्षण दिखने पर उक्त रोकथाम का उपाय करें। फल एवं सब्जी के खेतों में जहां पानी भरा हो वहां जल निकास की व्यवस्था तत्काल करें।