असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने राज्य में मुसलमानों के विवाह और तलाक के पंजीकरण समेत तीन कानूनों को मंजूरी दे दी है।
नए कानून राज्य विधानसभा सत्र में पेश किए जाएंगे। गुरुवार 22 अगस्त से विधानसभा का सत्र शुरू होने जा रहा है। अन्य दो कानूनों में विरासत स्थलों और आदिवासी भूमि की सुरक्षा शामिल है।
सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि पहले काजी मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण करते थे, अब सरकारी अधिकारी यह काम करेंगे। इस कानून का मकसद राज्य में बाल विवाह को समाप्त करना है।
मामले में जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि मुसलमानों के विवाह को विनियमित करने वाले पहले के कानून, असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त कर दिया जाएगा और इसकी जगह मुस्लिम विवाह और तलाक विधेयक-2024 लागू किया जाएगा।
पहले के कानून में मुस्लिम विवाह और तलाक के स्वैच्छिक पंजीकरण का प्रावधान था और सरकार को मुस्लिम व्यक्ति को ऐसे पंजीकरण के लिए आवेदन करने पर मुस्लिम विवाह और तलाक को पंजीकृत करने के लिए अधिकृत करने के लिए लाइसेंस प्रदान करने की अनुमति दी गई थी। कैबिनेट ने इस साल फरवरी में मौजूदा कानून को रद्द करने का फैसला किया था।
सीएम हिमंत सरमा ने कहा, “पहले काजी मुस्लिम विवाह और तलाक का पंजीकरण करते थे।
नये कानून के लागू होने से इन्हें सरकारी अधिकारियों द्वारा पंजीकृत कराना होगा। नया कानून बनने पर यह बंद हो जाएगा। यह राज्य में बाल विवाह को समाप्त करने का एक प्रयास है।”
अन्य नए कानूनों में बदलाव
हिमंत कैबिनेट ने असम भूमि और राजस्व विनियमन अधिनियम, 1886 में एक नए प्रावधान को शामिल करने को भी मंजूरी दे दी है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व से जुड़ा है।
सरमा ने कहा, “नया प्रावधान 250 वर्ष से अधिक पुराने निर्माण कार्यों के आसपास के 5 किमी के दायरे में केवल उन व्यक्तियों द्वारा भूमि की बिक्री और खरीद को प्रतिबंधित करेगा, जिनके परिवार की कम से कम तीन पीढ़ियां लगातार उस क्षेत्र में रह रही है।”
सीएम ने कहा कि शुरू में तीन स्थानों बारपेटा, बटाद्रबा और माजुली (वैष्णव मठ) को नए प्रावधान में शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जनता के सुझावों के आधार पर अन्य स्थानों को भी शामिल किया जा सकता है।
सीएम सरमा ने आगे कहा, “जिन लोगों ने पहले ही इन स्थानों के 5 किमी के दायरे में जमीन खरीद ली है, उन्हें किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है। काश पिछली सरकारों ने इन स्थानों की सुरक्षा के बारे में सोचा होता और पहले ही ऐसे प्रावधान बनाए होते।”