चांद पर तमाम उपग्रह और यान भेजकर दुनियाभर के देश तरह-तरह के रहस्य उजागर कर रही है।
पिछले साल इसरो ने चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर इतिहास रच दिया था।
चंद्रयान-3 ने चांद पर पानी, सल्फर समेत कई महत्वपूर्ण चीजों का पता लगाया और साबित किया कि भविष्य में चांद इंसानों के लिए रहने लायक विकल्प हो सकता है।
इसी क्रम में वैज्ञानिकों ने चांद से एक और खुशखबरी दी है। वैज्ञानिकों ने चांद में इंसानों की रहने लायक जगह का पता लगा लिया है।
इटली के वैज्ञानिकों ने चांद पर एक विशाल गुफा का पता लगाया है। यह स्थान 55 साल पहले नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन के लैंडिंग प्लेस से थोड़ी दूर स्थित है। इस स्थान पर सैकड़ों गुफा हो सकती हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद के जिस स्थान विशाल गुफा का पता लगा है, वहां ऐसी सैकड़ों और गुफाएं हो सकती हैं जिनका इस्तेमाल भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के आश्रयस्थल के रूप में किया जा सकता है।
इटली के वैज्ञानिकों के नेतृत्व वाली एक टीम ने सोमवार को बताया कि चंद्रमा पर अच्छी खासी बड़ी गुफा के साक्ष्य मिले हैं। यह अपोलो 11 के उतरने वाली जगह से सिर्फ 250 मील (400 किमी) दूर ‘सी ऑफ ट्रैंक्विलिटी’ में है।
सुरंग आकार की गुफाएं
यह गुफा लावा ट्यूब (सुरंग की आकृति का ढांचा) के ढहने से बनी है जो कि वहां पाई गई 200 से अधिक अन्य गुफाओं की तरह है। शोधकर्ताओं ने नासा के लूनार रीकानिसन्स ऑर्बिटर द्वारा जुटाए गए रडार आंकड़ों का विश्लेषण किया और इसके नतीजों की तुलना पृथ्वी पर स्थित लावा ट्यूब से की।
इसके निष्कर्ष ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार रडार के आंकड़ों से गुफा के शुरुआती बिंदु का ही पता है। उनका अनुमान है कि यह कम से कम 40 मीटर चौड़ी और 10 मीटर, संभवत: इससे भी अधिक लंबी है।
50 साल से रहस्य बनी थीं चांद की गुफाएं
ट्रेंटो विश्वविद्यालय के लियोनार्डो कैरर और लोरेंजो ब्रुजोन ने एक ईमेल में लिखा, ‘‘चंद्रमा की गुफाएं 50 से अधिक वर्षों से रहस्य बनी हुई थीं।
इसलिए, आखिरकार उनमें से किसी एक के बारे में पता लगाना काफी रोमांचक था।’’ वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश गुफाएं चंद्रमा के प्राचीन लावा मैदानी क्षेत्र में हैं।
इसके अलावा, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भी इसी तरह की कुछ गुफाएं हो सकती हैं जहां इस दशक के अंत में नासा के अंतरिक्ष यात्री कदम रखेंगे।
ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बने गड्ढों में पानी जमी हुई अवस्था में मौजूद है जो पीने के साथ ही रॉकेट ईंधन के रूप में काम आ सकता है।