क्यों कमंडल से जीता अखिलेश यादव का मंडल और बिहार में फेल रहे तेजस्वी; UP की इनसाइड स्टोरी…

बिहार में बीते साल जातिगत जनगणना हुई थी और आरक्षण बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए गए थे।

इसका क्रेडिट लगातार तेजस्वी यादव और आरजेडी लेते रहे हैं। इसके बाद भी जब नतीजे आए हैं तो उत्तर प्रदेश में मंडल की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिली हैं, जबकि बिहार में महागठबंधन 10 सीटों पर ही सिमट गया।

आखिर इसकी वजह क्या है कि यूपी में अखिलेश यादव कामयाब रहे और बिहार में मंडल की राजनीति वाले तेजस्वी यादव फेल साबित हुए।

इसके पीछे कुछ आंकड़े भी वजह माने जा रहे हैं। जैसे अखिलेश यादव पर आरोप लगते थे कि वह यादवों को ही प्राथमिकता देते हैं। इस बार उन्होंने इन आरोपों से मुक्ति पाने की कोशिश की।

अखिलेश यादव ने 8 फीसदी यादवों को ही टिकट दिया, जबकि गैर-यादव ओबीसी कैंडिडेट 42 फीसदी से ज्यादा रहे। उनका पूरा फोकस भाजपा के उस कैंपेन की काट पर रहा, जिसमें वह अखिलेश पर यादववाद का आरोप लगाती थी।

सपा ने इस बार कुर्मी नेताओं को भी बड़ी संख्या में टिकट दिए। इसका भी असर चुनाव पर दिखा। गोंडा, अंबेडकर नगर और बस्ती जैसी सीटों पर उसने कुर्मियों को उतारा और समाज ने उसका साथ भी दिया।

इस तरह अखिलेश यादव यह कोशिश करते दिखे कि व्यापक ओबीसी एकता बनाई जाए। भले ही इसके लिए यादवों के टिकट थोड़े कम करने पड़ें। वह इसमें सफल भी रहे।

क्यों बिहार में तेजस्वी को लगा झटका, जातिगत जनगणना भी रही फेल

बिहार में आरजेडी ने 23 और कांग्रेस ने 9 पर चुनाव लड़ा था। इसके बाद भी आरजेडी को 4 पर ही जीत मिली और कांग्रेस 3 पर सिमट गई। वहीं यूपी में अखिलेश यादव की पार्टी 62 सीटों पर लड़ी और 37 पर जीत गई। इसी तरह कांग्रेस ने 17 पर चुनाव लड़ा और 6 पर विजयी हुई।

सपा और कांग्रेस दोनों के लिए यह 2009 के बाद पहली बार इतनी बड़ी सफलता है। इसकी वजह मंडल राजनीति में सभी ओबीसी वर्गों क फिट करने की कोशिश मानी जा रही है।

जैसे सुल्तानपुर से रामभुआल निषाद जीते और मेनका जैसी नेता हार गईं। बांदा से भी पटेल कैंडिडेट को जीत मिली। यही हाल देवीपाटन मंडल में भी रहा, जिसके तहत गोंडा और बस्ती जैसे जिले आते हैं।

गैर-यादव ओबीसी के अलावा सवर्णों का भी मिला समर्थन

अखिलेश की इस रणनीति से तेजस्वी उलट चलते दिखे थे। बिहार में आरजेडी के 39 फीसदी कैंडिडेट यादव थे। माना जा रहा है कि इससे गैर-यादव ओबीसी छिटक गया। जेडीयू ने बड़ी संख्या में गैर-यादव उतारे थे, जो विजयी रहे।  

यूपी में अखिलेश और कांग्रेस की इस समावेशी कोशिश का ही नतीजा रहा है कि उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के 8 सांसद ऊंची जाति के भी बने हैं।

इसका अर्थ है कि सवर्णों का भी एक हिस्सा INDIA अलायंस के पक्ष में गया है।

इससे यह स्पष्ट हुआ है कि समाजवादी राजनीति में मुस्लिम और यादव समीकरण से आगे देखने का लाभ अखिलेश को मिला है और इसी के भरोसे उतरने का नुकसान तेजस्वी को रहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× Whatsaap