ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत ने देश में एक राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा कर दी है।
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से बीते 45 सालों में ईरान एक कट्टरपंथी देश के तौर पर देखा जाता रहा है। अयातुल्ला अली खामेनेई उसके शीर्ष नेता हैं, जो धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही मामलों में टॉप पोजिशन रखते हैं।
उनकी उम्र 85 साल है और माना जा रहा था कि इब्राहिम रईसी ही उनकी जगह लेंगे। अब इब्राहिम रईसी की 63 साल की उम्र में हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत होने से एक शून्य पैदा हो गया है, जिसे भरने की कोशिश हो रही है। खामेनेई समर्थक देश का कट्टरपंथी तबका चाहता था कि रईसी ही उनकी जगह लें।
यह ठीक वैसे ही था, जैसे खुद अयातुल्लाह खामेनेई 1989 में देश के सर्वोच्च नेता बनने से पहले 1989 तक राष्ट्रपति के पद पर थे।
ईरान में सुप्रीम लीडर के पास ही सबसे ज्यादा ताकत होती है। अब तक रईसी ही इस पद के हकदार माने जा रहे थे, लेकिन फिलहाल जो हालात हैं, उसमें पहले राष्ट्रपति को ही चुना पड़ेगा।
अब राष्ट्रपति पद की बात करें तो इस रेस में खुद खामेनेई के दूसरे बेटे मुजतबा भी शामिल हैं। कहा जाता है कि मुजतबा खामेनेई तो रईसी से पहले ही राष्ट्रपति बनने की रेस में थे, लेकिन खामेनेई ने ही इसका विरोध किया। मुजतबा पहले ही उनका कामकाज संभाल रहे हैं और भरोसेमंद भी हैं, जिन पर सेना से लेकर तमाम धर्म गुरु भरोसा करते हैं।
कभी खामेनेई ने ही किया था बेटे को राष्ट्रपति बनाने का विरोध
उनका कहना था कि यदि मेरे ही बेटे को राष्ट्रपति बना दिया गया तो संदेश जाएगा कि ईरान वंशवादी शासन व्यवस्था वाला देश बन गया है, जैसा कभी पहले की अमेरिका समर्थित सरकारों में होता था। इब्राहिम रईसी की असमय मौत के बाद अब मुजतबा फिर से मुकाबले में आ गए हैं।
मुजतबा ईरान के ज्यादातर राजनीतिक मामलों में सक्रिय रहे हैं। इसके अलावा सेना से भी उनके अच्छे संबंध हैं। ऐसे में यदि वे राष्ट्रपति के पद पर काबिज हो जाएं तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।
राष्ट्रपति के अलावा सुप्रीम लीडर के उत्तराधिकारी की भी तलाश
एक पूर्व ईरानी अधिकारी का कहना है कि ईरान की सेना रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स और कई प्रभावशाली धर्मगुरु चाहते हैं कि जल्दी ही देश के राष्ट्रपति के अलावा सुप्रीम लीडर के उत्तराधिकार को लेकर भी फैसला हो जाए।
अमेरिका स्थित ईरान मामलों के एक्सपर्ट एलेक्स वातांका ने कहा कि इब्राहिम रईसी के बाद नए नेता को चुनने में आतंरिक कलह बढ़ सकती है।
यही नहीं हालात ईरान में उसी तरह के हो सकते हैं, जैसे 1980 के दशक के शुरुआती दौर में थे। गौरतलब है कि ईरान के राष्ट्रपति पद के लिए 28 जून को चुनाव कराने का ऐलान हो चुका है।