लोकसभा चुनाव 2024 में पश्चिम बंगाल की बहरामपुर सीट पर इस बार काफी रोचक मुकाबला है। यहां विपक्षी गठबंधन में ही कांटे का मुकाबला है।
एक तरह ‘दादा’ निकनेम से प्रसिद्ध कांग्रेस नेता और बहरामपुर के सिटिंग सांसद अधीर रंजन चौधरी हैं, जो कई बार सदन में बोलते हुए अपना धीरज खोते नजर आए, लेकिन पश्चिम बंगाल की बेहद कठिन राजनीतिक लड़ाई में उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं खोया। वो यहां से पांच बार सांसद रह चुके हैं। इस बार उनके खिलाफ टीएमसी प्रत्याशी और टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर युसूफ पठान मैदान में हैं।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बहरामपुर क्षेत्र में बेताज बादशाह कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ही हैं। यहां से वह लगातार पांच चुनाव जीत चुके हैं और इस बार जीत की डबल हैट्रिक के लिए मैदान में हैं।
टीएमसी ने उनके खिलाफ क्रिकेटर यूसुफ पठान को उतारा है।
गरीबों के मसीहा और रॉबिनहुड के नाम से मशहूर चौधरी की बदौलत बंगाल में कभी सीपीएम और अब तृणमूल कांग्रेस के वर्चस्व में भी कांग्रेस का वजूद कायम है। उन्होंने बीते ढाई दशकों से अपने बूते मुर्शिदाबाद जिले को कांग्रेस का अजेय किला बनाए रखा है।
बागियों को भी जिताया मुर्शिदाबाद में चौधरी की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने विधानसभा से लेकर पंचायत चुनावों तक कई बार आलाकमान की इच्छा के खिलाफ जाकर बागी उम्मीदवारों तक को जिताया है। मुस्लिम बहुल सीट पर इस बार लड़ाई बहुत दिलचस्प है।
अधीर रंजन चौधरी को वर्ष 2019 में लोकसभा में संसदीय दल का नेता बनाया गया तो पश्चिम बंगाल में एक लोकप्रिय नेता के रूप में उनकी छवि ही इस फैसले का प्रमुख आधार थी। पढ़ाई बीच में छोड़ नक्सल आंदोलन के जरिए राजनीति में कदम रखने वाले चौधरी का सफर आसान नहीं रहा।
गांधी परिवार के करीबी जुझारू छवि और विरोधियों को चुनौती देने की क्षमता ने चौधरी को गांधी परिवार का करीबी बना दिया। उन्हें ही बंगाल में ममता से गठजोड़ नहीं हो पाने की प्रमुख वजह बताया गया। करियर के शुरुआती दिनों मेंअधीर फॉरवर्ड ब्लॉक में रहे।
वर्ष 1991 के विधानसभा में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार मैदान में उतरे अधीर को हार झेलनी पड़ी। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में एक सीपीएम नेता के परिजन की हत्या के आरोप में जेल में रहने के बावजूद चौधरी नबग्राम विधानसभा सीट जीत ली।
अधीर 1996 में पहली बार विधायक बने और 1999 में सांसद। उन्होंने बहरामपुर सीट से 1999 में उस समय चुनाव लड़ा था, जब वह आरएसपी का गढ़ थी।
इसके बाद चौधरी लगातार पांच बार इसी सीट से जीत चुके हैं। इस बार अगर फिर से जीत मिली तो यह उनकी डबल हैट्रिक वाली जीत होगी।