देश में वित्तीय धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों पर शिकंजा कसने के लिए बड़ा कदम उठाया जा सकता है।
इसके तहत बैंकिंग लेनदेन को सुरक्षित बनाने के लिए सभी बैंक आइरिस (आंखों की पुतली) स्कैन के इस्तेमाल पर विचार कर रहे हैं। इ
स संबंध में आरबीआई से भी चर्चा की जा रही है।
समिति ने दिए सुझाव
मामले से जुड़े एक बैंक अधिकारी ने बताया कि इस मुद्दे पर पिछले महीने एक बैठक में विचार-विमर्श किया गया था और इसके कार्यान्वयन तथा चुनौतियों के बारे में आगे की चर्चा के लिए आरबीआई से संपर्क करने का निर्णय लिया गया।
उन्होंने कहा कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता में बैंकों की एक आंतरिक समिति ने कुछ प्रारंभिक सुझाव दिए थे, जिन पर वर्तमान में विचार-विमर्श किया जा रहा है।
बुजुर्गों को होगा फायदा
बताया जा रहा है कि यह विकल्प खास तौर पर वरिष्ठ नागरिकों की सहायता के लिए लाया जा रहा है। उम्र बढ़ने के कारण बुजुर्गों की उंगलियों के निशान भी अलग हो जाते हैं, जिसके कारण उन्हें सत्यापन में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
इसी तरह की एक घटना में एक 70 वर्षीय पेंशनभोगी महिला को बैंक से खाली हाथ लौटना पड़ा था, क्योंकि उसके अंगूठे के निशान बैंक के रिकॉर्ड से मेल नहीं खाते थे।
बाद में एसबीआई ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए महिला को पेंशन राशि जारी मैन्युअल तरीके से जारी की थी।
चुनौतियां पर भी चर्चा
मामले से जुड़े अधिकारी ने बताया कि इस व्यवस्था को लागू करने में कई चुनौतियां भी हैं। मसलन, मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने वाले लोगों की आइरिस आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन में दिक्कतें आ सकती हैं।
इसका कारण यह है कि ऑपरेशन के बाद पुतली की बनावट में फर्क आ सकता है, जिससे सत्यापन विफल हो सकता है। इस चुनौती से निपटने के लिए वरिष्ठ नागरिकों के लिए पुन: नामांकन जैसे विकल्प तलाशे जा सकते हैं।
ऐसे काम करेगा नया सिस्टम
इसमें बैंक खाते को हाथों की अंगुलियों के अलावा आंखों की पुतलियों को स्कैन कर लिंक किया जाएगा। जब भी ग्राहक लेनदेन करेगा तो उसका आइरिस स्कैन किया जा सकता है।
वर्तमान में आधार आधारित भुगतान सत्यापन के लिए फिंगर प्रिंट का इस्तेमाल किया जाता है।