कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने अपने एक फैसले से एक तरफ कांग्रेस के एक चुनावी वादे को पूरा करने की कोशिश की है तो दूसरी तरफ बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया है।
सिद्धारमैया कैबिनेट ने गुरुवार को आरक्षण पर जस्टिस एजे सदाशिव आयोग की रिपोर्ट के आधार पर अनुसूचित जाति (SC) समुदाय के बीच आंतरिक आरक्षण (कोटा के अंदर कोटा) की सिफारिश केंद्र सरकार से करने का फैसला किया है।
कांग्रेस पार्टी ने पिछले साल मई में हुए विधानसभा चुनावों से पहले इस आरक्षण को लागू करने का वादा किया था।
कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए, राज्य के कानून मंत्री एचके पाटिल और समाज कल्याण मंत्री एचसी महादेवप्पा ने कहा कि राज्य कैबिनेट ने नई जनगणना के अनुसार आरक्षण को संशोधित करने और संविधान के अनुच्छेद 341 में संशोधन करने के लिए राज्यों को संवैधानिक रूप से सशक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिश करने का निर्णय लिया है।
संविधान के अनुच्छेद 341(1) के तहत, आरक्षण के लिए पात्र अनुसूचित जातियों की सूची राज्य द्वारा तैयार की जानी है और फिर राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित की जानी है। हालाँकि, किसी जाति या समूह को सूची से जोड़ना या हटाना केवल संसद द्वारा कानून बनाकर ही किया जा सकता है।
क्या है आंतरिक आरक्षण?
साल 2005 में तत्कालीन कांग्रेस-जेडीएस सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस ए.जे. सदाशिव की अगुवाई में एक आयोग का गठन किया था, जिसे अनुसूचित जाति के बीच आरक्षण लाभ के समान वितरण की जांच करने का जिम्मा दिया गया था।
यह कदम उन शिकायतों पर उठाया गया था, जिसमें कहा गया था कि 15 फीसदी एससी आरक्षण का लाभ कुछ खास जातियों के लोगों तक ही सीमित रह गया है।
आयोग ने अनुसूचित जाति वर्ग की सभी 101 जातियों को मोटे तौर पर चार समूहों यानी एससी (लेफ्ट), एससी (राइट), एससी (स्पृश्य) और एससी (अन्य) में बांटा था और दिए जा रहे 15 प्रतिशत के समग्र आरक्षण को उनके बीच बांटने की सिफारिश की थी।
पिछले साल मार्च में कर्नाटक में तत्कालीन भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 101 अनुसूचित जातियों के बीच आंतरिक आरक्षण यानी उसी समुदाय को कोटे के अंदर कोटा देने का फैसला किया था।
बीजेपी सरकार ने आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया था और नए आरक्षण फॉर्मूले के तहत, एससी (लेफ्ट) को 6 फीसदी, एससी (राइट) को 5.5 फीसदी, एससी (स्पृश्य) को 4.5 फीसदी और एससी (अन्य) को एक फीसदी आरक्षण दिया गया।
हालाँकि, बीजेपी मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में विफल रही और विधानसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा।
पिछले साल बीजेपी को इस कदम के विरोध का सामना करना पड़ा था। ‘स्पृश्य’ बंजारा और भोवी जातियों के समूह – जो विश्लेषकों के अनुसार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण के सबसे बड़े लाभार्थियों में से कुछ थे – अब 4.5 प्रतिशत के कोटा तक सीमित होने का विरोध कर रहे थे। 27 मार्च को बंजारा प्रदर्शनकारियों ने भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा के शिकारीपुरा स्थित घर पर पत्थरबाजी भी की थी।
बीजेपी के सामने क्या मुश्किल?
सिद्धारमैया ने सियासी पिच पर आगे बढ़ते हुए इस आरक्षण को संवैधानिक सुरक्षा कवच देने के लिए गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाला है।
इससे पहले बीजेपी सरकार ने आंतरिक आरक्षण को संवैधानिक और कानूनी मान्यता देने के लिए ठोस कदम नहीं उठाया था। सिद्धारमैया सरकार ने यह कदम तब उठाया है, जब कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।
अगर केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उसे संविधान के अनुच्छेद 341(1) के तहत सुरक्षा और कानूनी मान्यता प्रदान कर दी तो यह कदम कांग्रेस पार्टी के पक्ष में जाएगा और अगर केंद्र सरकार ने इसे रोका तब भी कांग्रेस उस मुद्दे को चुनावों में बीजेपी को दलित विरोधी करार देकर भुना सकती है।