दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ साल 2015 में दर्ज अपहरण और बलात्कार के मामले को रद्द कर दिया। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि किशोरों के बीच ‘सच्चे प्यार’ को कानून या राज्य की कार्रवाई की कठोरता से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। आरोपी नौ साल पहले एक लड़की के साथ भाग गया था जब वह नाबालिग थी।
कोर्ट में आरिफ खान नाम के शख्स की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई चल र ही थी।
इसमें मांग की गई थी कि महिला के माता-पिता की तरफ से उनके खिलाफ दर्ज केस को रद्द कर दिया जाए। साल 2015 में जोड़ा भाग गया था और मुस्लिम रीति-रिवाज से शादी कर ली थी। दोनों एक ही धर्म से संबंध रखते हैं।
जब खान को गिरफ्तार किया गया था, तब उनकी पत्नी 5 महीनों की गर्भवती थीं। हालांकि, उस दौरान उन्होंने गर्भपात से इनकार कर दिया था। लगभग तीन साल के बाद 2018 में जेल से बाहर आने के बाद जोड़े को फिर एक बेटी हुई।
हाईकोर्ट के सामने महिला की तरफ से पेश वकील ने कहा कि उन्होंने अपनी मर्जी से खान के साथ रिश्ता बनाया और तब वह 18 साल की थीं। इस तर्क का दिल्ली पुलिस ने विरोध किया और कहा कि स्कूल रिकॉर्ड्स के अनुसार, लड़की की उम्र 18 साल से कम थी।
क्या बोला दिल्ली हाईकोर्ट
तथ्यों की जांच के बाद कोर्ट ने पाया कि दोनों पक्षों ने शादी कर ली है। जबकि, कानून इसकी इजाजत नहीं देता है, हालांकि, पत्नी ने हर मोड़ पर पति का साथ दिया है और शादी को सालों बीत गए हैं और उनकी दो बेटियां भी हैं।
कोर्ट ने कहा, ‘…इस मामले में दोनों पक्षों के परिवारों और शादी से हुईं दो बेटियों, जो 8 और ढाई साल की हैं और पत्नी और बीते 9 साल में दोनों का मिलकर बनाया सुंदर जीवन दांव पर है।’ कोर्ट ने केस को रद्द कर दिया।
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा था, ‘यह कोर्ट बार-बार इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि दो लोगों के बीच सच्चा प्यार, जिसमें एक या दोनों नाबालिग हो सकते हैं या बालिग होने की कगार पर हो सकते हैं। ऐसे सच्चे प्यार को कठोर कानून के जरिए नियंत्रित नहीं किया जा सकता।’