माता-पिता अक्सर ही छोटे बच्चों को शांत कराने के लिए उन्हें मोबाइल फोन थमा देते हैं।
इससे बच्चा शांत होकर स्क्रीन के सामने घंटों बिताने लगता है। इतनी कम उम्र में मोबाइल फोन में लगने से बच्चों के दिमाग का विकास ठीक से नहीं हो पा रहा है।
बच्चे समय पर बोलना नहीं सीख पा रहे हैं। ऐसे में बच्चों की स्पीच थैरेपी तक करानी पड़ रही है।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के रुड़की स्थित डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर (डीईआईसी) की मेडिकल ऑफिसर डॉ.आयुषी शर्मा ने बताया कि कोरोनाकाल से शुरू हुई मोबाइल फोन की लत बच्चों के मानसिक विकास पर असर डाल रही
है। ऐसे में परिजन, बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म(स्वलीनता) की परेशानी को लेकर यहां आ रहे हैं। ज्यादातर एक से पांच वर्ष तक के बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं। इसमें बच्चे ठीक से बोल नहीं पा रहे हैं। ये गंभीर समस्या बनती जा रही है।
हर माह 10-15 इस तरह के केस आ रहे हैं। डॉ. आयुषी के अनुसार, उनके सेंटर में रुड़की, हरिद्वार और सहारनपुर के बच्चे आ रहे हैं। कहा कि बच्चों की इलाज किया जा रहा है।
बच्चों के व्यवहार में बदलाव
1. बच्चे फोन में वीडियो देखते हैं, गेम खेलते हैं। इससे आसपास के वातावरण से दूर हो जाते हैं
2. व्यवहार असामान्य होने लगता है। उम्र के अनुसार गतिविधियां कम होती हैं 3. समय पर
3. शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर पाते।
इन लक्षणों पर हो जाएं सतर्क
1. हर थोड़ी देर में मोबाइल फोन मांगना।
2. परिजनों के साथ नजरें नहीं मिलाना।
3. नाम पुकारने पर अनसुना कर देना।
4. वीडियो के शब्दों को बार-बार गुनगुनाना।
चिड़चिड़े हो रहे बच्चे
डॉ.आयुषी के अनुसार, एक से पांच वर्ष की आयु में बच्चों का दिमाग विकसित होता है। इस उम्र में बाहरी और परिवार के लोगों से बातचीत, शारीरिक गतिविधियां, माइंड गेम बच्चों के दिमाग को तेज करते हैं।
बच्चे जितनी ज्यादा एक्टिविटी करेंगे, उतने ही शार्प बनेंगे। फोन के आदी बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं। चिल्लाने और रोने लगते हैं।
उपचार
डॉ.आयुषी ने बताया कि समय रहते इसका उपचार संभव है। इस तरह के बच्चों की सेंटर में काउंसलिंग की जाती है। कम से कम एक माह स्पीच थैरेपी दी जाती है।
बच्चों के लिए दूसरे मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं। माता-पिता को जागरूक होने की जरूरत है।