भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के महुआ मोइत्रा पर लगाए गए गंभीर आरोपों के बाद स्पीकर ओम बिड़ला ने इस मामले को आचार समिति को भेज दिया है।
दुबे का आरोप है कि मोइत्रा ने कारोबारियों से पैसा लेकर संसद में सवाल पूछे।
हालांकि दुबे के आरोपों पर मोइत्रा का कहना है कि पहले उनके खिलाफ पेंडिंग मामलों की जांच की जाए। बता दें कि इस कमेटी का गठन स्पीकर एक साल के लिए करता है।
इसके अध्यक्ष भाजपा के विनोद कुमार सोनकर हैं। इसके अलावा भाजपा के 6 नेता, कांग्रेस के चार नेता, एक शिवसेना और जेडीयू, सीपीएम, बीएसपी के एक-एक नेता शामिल हैं।
बता दें कि इस समिति की आखिरी बैठक 27 जुलाई 2021 को हुई थी। हालांकि समिति के सामने बेहद हल्के-फुल्के मामलों को रखा गया था।
गंभीर मामलों की सुनवाई विशेषाधिकार समिति या फिर विशेष समिति ही करती रही है। साल 2005 में बंसल कमिटी की रिपोर्ट के बाद 10 सांसदों को लोकसभा से और 1 सांसद को राज्यसभा से निष्कासित कर दिया गया था।
यह मामला भी कैश के बदले सवाल का ही था। उस वक्त भाजपा ने सांसदों को निष्कासित करने के खिलाफ प्रदर्शन किया और मांग की कि इस मामले को विशेषाधिकार समिति को सौ्ंपा जाए।
कैसे बनी आचार समिति
लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी आचार्य ने कहा, 2005 के मामले में कई सबूत थे। यह स्टिंग ऑपरेशन पर आधारित था। पैसे के लिए सवाल पूछने का यह मामला भी उससे जुड़ा हुआ है।
साल 1996 में पहली बार आचार समिति का प्रस्ताव रखा गया था। तत्कालीन उपराष्ट्रपति केआर नारायणन ने उच्च सदन के लिए 1997 में आचार समिति बनाई।
विशेषाधिकार समिति वाले ही सारे नियम इस समिति में भी लागू होते हैं। 1997 में इस कमिटी के सदस्यों ने कई देशों का दौरा किया और वहां कि व्यवस्था को समझने का प्रयास किया।
हालांकि जब तक दोनों सदनों की आचार समिति के गठन का प्रस्ताव रखा जाता तब तक लोकसभा भंग हो गई। 2000 में पूर्व स्पीकर जीएमसी बालयगी ने एडहॉक एथिक्स कमेटी बना दी। 2015 में यह सदन की स्थायी समिति बनी।
वर्तमान में कोई भी संसद का सदस्य एक हलफनामे के साथ किसी भी सदस्य की शिकायत कर सकता है। वहीं दूसरा सदस्य भी प्रमाणों के साथ उसपर शिकायत कर सकता है।
हालांकि समिति ऐसे मामलों पर सुनवाई नहीं कर सकती जो कि अदालत में हों या फिर मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर आरोप लगाए गए हों। स्पीकर किसी भी मामले को आचार समिति के पास भेज सकते हैं। विशेषाधिकार और आचार समिति का काम लगभग एक जैसा ही है। दोनों का काम सदन और सदस्यों की स्वतंत्रता, गरिमा को बनाए रखना है।
निशिकांत दुबे ने लोकसभा स्पीकर को पत्र लिखकर कहा था कि महुआ मोइत्रा ने 61 सवालों में से 50 सवाल दर्शन हीरानंदानी और उनकी कंपनी के व्यावसायिक हित बचाने के लिए पूछे।
उनका कहना है कि हीरानंदानी ग्रुप अडानी के खिलाफ बोलियां लगा रहा था। इस पत्र में महुआ मोइत्रा द्वारा संवैधानिक अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया।