‘इंडिया गठबंधन’ की कोऑर्डिनेशन कमेटी से गांधी परिवार दूर! मगर ‘बिग ब्रदर’ की मानसिकता छोड़ पाएगी कांग्रेस?…

विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन (I।N।D।I।A) की समन्वय समिति में भले ही गांधी परिवार का कोई मेंबर शामिल नहीं हुआ लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस (Congress) बड़े भाई की भूमिका निभाना बंद कर देगी? 2024 के लोकसभा चुनावों (2024 Lok Sabha Elections) में भाजपा (BJP) से मुकाबला करने के लिए 13 सदस्यीय समन्वय समिति से दूर रहने के गांधी परिवार के फैसले से यह आभास होता है कि कांग्रेस बड़े भाई की तरह काम नहीं करना चाहती है।

बहरहाल नेताओं की मुस्कुराहट, एक साथ किया गया फोटो सेशन, एक राय से दी गई बाइट्स हमेशा असली तस्वीर नहीं दिखाते हैं। विपक्षी गठबंधन की मुंबई बैठक में हुई चूकें और गलतियां एक अलग ही कहानी बयान करते हैं।

कांग्रेस और शिवसेना दोनों की ओर से जारी कार्यक्रम की सूची में लोगो जारी करने की घोषणा की गई थी।

लेकिन सुबह 10।30 बजे रिलीज होने से कुछ घंटे पहले ही इसे रोक दिया गया। टीएमसी और लेफ्ट के दो वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई थी।

यह निश्चित रूप से जारी किया जाएगा। एक सूत्र ने कहा कि लोगो के बारे में कुछ भी अंतिम रूप नहीं दिया गया था। टीएमसी को लोगो को लेकर कुछ आपत्तियां थीं।

समाजवादी पार्टी और जद (यू) ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने महसूस किया कि इसमें ‘इंडिया’ के विचार वाले नेताओं और पार्टियों पर फोकस करने की जरूरत है।

कमेटियों को लेकर कड़वाहट
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की मुंबई बैठक में कई समितियों को अंतिम रूप दिया गया, जिसको लेकर बहुत नाराजगी पैदा हुई है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्लानिंग, मीडिया और रिसर्च के लिए बनाई गई उप-समितियों के लिए टीएमसी ने अभी तक नाम नहीं दिए हैं।

टीएमसी के एक बड़े नेता ने कहा कि ‘हमें उम्मीद थी कि ममता बनर्जी या चिदंबरम घोषणापत्र समितियों का हिस्सा होंगे। लेकिन जिन लोगों को समिति में रखा गया है, उनमें से कई हल्के हैं और इससे गंभीरता कम हो जाती है।’ मीडिया समिति में कई नामों पर कुछ आपत्तियां हैं, जो कांग्रेस के लिए भारी या एकतरफा लगती है।

सोशल मीडिया में कांग्रेस की प्रमुखता से नाराजगी
एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अभी हाल ही में कांग्रेस के एक सोशल मीडिया पोस्ट को हटाना पड़ा। क्योंकि इसमें राहुल गांधी को प्रमुखता से दिखाया गया था।

सोशल मीडिया टीम में कांग्रेस को प्रमुखता मिलने पर टीएमसी को आपत्ति थी। सुधार के तौर पर डीएमके सांसद दयानिधि मारन को जोड़ा गया है।

चिंता का दूसरा क्षेत्र मीडिया को संभालने को लेकर भी है। सूत्रों ने कहा कि पवन खेड़ा को बाहर करना सही कदम नहीं माना जा रहा है क्योंकि वह मीडिया विभाग के प्रमुख हैं।

उनका नाम कनिमोझी के साथ सुधार के रूप में जोड़ा गया था। यह समिति का वजन बढ़ाने और खेड़ा को शांत करने के लिए भी है। डीएमके नेता तिरुचि एन शिवा का नाम अभियान समिति में जोड़ा गया है, ताकि एक वरिष्ठ व्यक्ति को शामिल किया जा सके।

सीट बंटवारा
यह सबसे पेचीदा मुद्दा रहा है और इसने तृणमूल कांग्रेस को नाराज कर दिया है। जिसने आम आदमी पार्टी, सपा, राजद और जद (यू) के साथ इस बात पर जोर दिया कि सीट बंटवारे को कब अंतिम रूप दिया जाएगा, इसके लिए एक समय सीमा तय की जानी चाहिए।

जहां इस मामले पर कांग्रेस टाल-मटोल करती रही, वहीं टीएमसी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल न होने का फैसला किया। कुछ सहयोगियों की दूसरी आपत्ति इस बात को लेकर है कि प्रस्ताव में सीट बंटवारे की घोषणा के लिए किसी विशेष तारीख का जिक्र क्यों नहीं किया गया। अब सभी की निगाहें दिल्ली में विपक्ष की अगली बैठक पर हैं। मगर कांग्रेस के लिए दिखाया गया अविश्वास मोर्चे के लिए परेशानी पैदा करने की क्षमता रखता है।

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