भारत और चीन के बीच होने वाली कमांडर स्तर की 19वीं दौर की बातचीत से पहले रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के शीर्ष सूत्रों ने यह जानकारी दी है कि तीन साल पहले गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारतीय सेना एक्शन मोड में आ चुकी थी और लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारत ने सीमा पर बड़े पैमाने पर सुरक्षा दुरुस्त कर ली थी।
रक्षा क्षेत्र से जुड़े टॉप सोर्स ने एजेंसी के मुताबिक LAC पर भारतीय वायुसेना ने 68,000 से अधिक सैनिकों, लगभग 90 टैंक और अन्य हथियार प्रणालियों को तीव्रगति से देशभर से पूर्वी लद्दाख में पहुंचाकर तैनात कर दिया था।
सूत्रों ने कहा कि वायुसेना के विमानों ने भारतीय सेना के कई डिवीजन को ‘एयरलिफ्ट’ किया था, जिसमें कुल 68,000 से अधिक सैनिक, 90 से अधिक टैंक, पैदल सेना के करीब 330 बीएमपी लड़ाकू वाहन, राडार प्रणाली, तोपें और कई अन्य साजो-सामान शामिल थे।
सूत्रों के अनुसार, वायुसेना के परिवहन बेड़े द्वारा कुल 9,000 टन की ढुलाई की गई थी, जो वायुसेना की बढ़ती रणनीतिक ‘एयरलिफ्ट’ क्षमताओं को प्रदर्शित करती है। इस कवायद में सी-130जे सुपर हरक्यूलिस और सी-17 ग्लोबमास्टर विमान भी शामिल थे।
सूत्रों ने बताया कि गलवान झड़प के बाद,भारतीय वाय़ु सेना ने हवाई गश्त के लिए राफेल और मिग-29 विमानों सहित बड़ी संख्या में लड़ाकू विमानों को भी तैनात किया था, जबकि वायुसेना के विभिन्न हेलीकॉप्टर को गोला-बारूद और सैन्य साजो-सामान को पर्वतीय ठिकानों तक पहुंचाने के कार्य में लगाया गया था।
सूत्रों ने कहा कि एसयू-30 एमकेआई और जगुआर लड़ाकू विमानों की निगरानी की सीमा लगभग 50 किलोमीटर थी और उन्होंने सुनिश्चित किया कि चीनी सैनिकों की स्थिति और गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जाए।
सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच 15 जून 2020 को हुई सर्वाधिक गंभीर सैन्य झड़पों की पृष्ठभूमि में भारतीय वायुसेना ने लड़ाकू विमानों के कई स्क्वाड्रन को ‘तैयार स्थिति’ में रखने के अलावा, दुश्मन के जमावड़े की चौबीसों घंटे निगरानी तथा खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए अपने एसयू-30 एमकेआई और जगुआर लड़ाकू विमान को क्षेत्र में तैनात किया था।
वायुसेना की रणनीतिक ‘एयरलिफ्ट’ क्षमता पिछले कुछ वर्षों में कैसे बढ़ी है, इसका जिक्र करते हुए सूत्रों ने कहा कि एक विशेष अभियान के तहत एलएसी के साथ विभिन्न दुर्गम क्षेत्रों में त्वरित तैनाती के लिए वायुसेना के परिवहन बेड़े द्वारा सैनिकों और हथियारों को ”बहुत कम समय” के अंदर पहुंचाया गया था।
उन्होंने कहा कि बढ़ते तनाव के चलते वायुसेना ने चीन की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने के लिए क्षेत्र में बड़ी संख्या में रिमोट संचालित विमान (आरपीए) भी तैनात किए थे।
सूत्रों के मुताबिक, चूंकि कई स्थानों पर सीमा विवाद जारी है, इसलिए भारतीय थल सेना और वायुसेना दुश्मन की किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए उच्च स्तर की युद्ध तैयारी बनाए रख रही हैं।
वायुसेना ने विभिन्न राडार स्थापित करके और क्षेत्र में एलएसी के अग्रिम ठिकानों पर सतह से हवा में मार करने वाले निर्देशित हथियारों की तैनाती करके अपनी वायु रक्षा क्षमताओं और युद्ध की तैयारी को तेजी से बढ़ाया है।
सूत्रों ने भारत के समग्र दृष्टिकोण का जिक्र करते हुए कहा कि देश की रणनीति सैन्य स्थिति को मजबूत करने, विश्वसनीय सैन्य बलों को कायम रखने और किसी भी स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए दुश्मन के जमावड़े पर नजर रखने की थी।
एक सूत्र ने अधिक विवरण साझा किए बिना बताया कि वायुसेना प्लेटफॉर्म ने बेहद कठिन परिस्थितियों में काम किया और अपने सभी मिशन लक्ष्यों को पूरा किया। एक अन्य सूत्र ने कहा कि ‘ऑपरेशन पराक्रम’ की तुलना में समग्र ऑपरेशन ने भारतीय वायुसेना की बढ़ती ‘एयरलिफ्ट’ क्षमता को प्रदर्शित किया।
दिसंबर 2001 में संसद पर हुए आतंकवादी हमले के बाद, भारत ने ‘ऑपरेशन पराक्रम’ शुरू किया था, जिसके तहत उसने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारी संख्या में सैनिकों को लामबंद किया था।
पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के बाद सरकार लगभग 3,500 किलोमीटर लंबी एलएसी पर बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दे रही है।
रक्षा मंत्रालय ने पहले ही पूर्वी लद्दाख में न्योमा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) पर समग्र बुनियादी ढांचे में वृद्धि एवं सुधार का काम शुरू कर दिया है, ताकि सभी प्रकार के सैन्य विमान इससे संचालित हो सकें।
गलवान घाटी में हुई झड़पों के बाद से थलसेना ने भी अपनी लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं।
इसने पहले ही अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के साथ पर्वतीय क्षेत्रों में आसानी से ले जाने योग्य एम-777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर तोपें अच्छी-खासी संख्या में तैनात कर दी हैं। एम-777 को चिनूक हेलीकॉप्टर में शीघ्रता से ले जाया जा सकता है और सेना के पास अब अभियानगत आवश्यकताओं के आधार पर उन्हें शीघ्रता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का साधन है।
सेना ने अरुणाचल प्रदेश में अपनी इकाइयों को दुर्गम क्षेत्र में संचालित होने वाले अमेरिका निर्मित वाहनों, इजराइल की 7.62 एमएम नेगेव लाइट मशीन गन और कई अन्य घातक हथियारों से लैस किया है।
भारतीय और चीनी सेना के बीच पूर्वी लद्दाख में कुछ स्थानों पर तीन साल से अधिक समय से गतिरोध बना हुआ है, जबकि दोनों पक्षों ने व्यापक राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद कई क्षेत्रों से सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पूरी कर ली है।
गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव के बाद भारत और चीन के संबंधों में काफी गिरावट आई। क्षेत्र में एलएसी पर दोनों ओर वर्तमान में लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं।
दोनों पक्षों के बीच अगले चरण की उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता सोमवार को होनी है। वार्ता में, संभावना है कि भारत टकराव वाले शेष स्थानों से सैनिकों को शीघ्र पीछे हटाए जाने पर जोर देगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल ने 24 जुलाई को जोहानिसबर्ग में पांच देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) के समूह ‘ब्रिक्स’ की बैठक के मौके पर शीर्ष चीनी राजनयिक वांग यी से मुलाकात की थी।
बैठक पर बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि डोभाल ने वांग यी को बताया कि 2020 के बाद से भारत-चीन सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी पर स्थिति ने ”रणनीतिक विश्वास” और रिश्ते के सार्वजनिक और राजनीतिक आधार को खत्म कर दिया है।
बयान में कहा गया था कि एनएसए ने द्विपक्षीय संबंधों में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए स्थिति को पूरी तरह से हल करने और सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-चैन बहाल करने के वास्ते निरंतर प्रयासों के महत्व पर जोर दिया।
पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई 2020 को पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा हुआ था।