कनाडा में कैसे फल-फूल रहे खालिस्तानी, भारत के गुस्से के बाद भी क्यों नरम है ट्रूडो सरकार…

अपने साथियों की मौत से गुस्साए खालिस्तानी आतंकवादी भारत को निशाना बनाने के लिए हर प्रयास में लगे हुए हैं। कनाडा और उसके पड़ोसी अमेरिका में हुईं हालिया घटनाएं बताती हैं कि खालिस्तानी बौखला गए हैं।

वे भारत के दूतावासों को निशाना बना रहे हैं। खासतौर से कनाडा में, जहां खालिस्तानी आतंकवादी खूब फल-फूल रहे हैं और उन्हें खुले तौर पर ट्रूडो सरकार का समर्थन मिलता दिख रहा है।

पिछले कुछ महीनों में कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादियों से जुड़ी तीन बड़ी भारत विरोधी घटनाएं सामने आई हैं लेकिन हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने उनके खिलाफ कोई ऐसा एक्शन नहीं लिया जिसका असर देखने को मिला हो।

कनाडा में भारतीय राजनयिकों को लेकर विवादित पोस्टर

कनाडा में सोशल मीडिया पर कुछ पोस्टर वायरल हो रहे हैं। इनमें भारतीय राजनयिकों को धमकी दी गई है। हालांकि इस पर कनाडा ने भारतीय अधिकारियों और राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त किया है और खालिस्तान की एक रैली से पहले प्रसारित हो रही ‘‘प्रचारात्मक सामग्री’’ को ‘‘अस्वीकार्य’’ बताया है।

कनाडा की विदेश मंत्री मिलानी जॉली का यह बयान तब आया है जब एक दिन पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत ने कनाडा, ब्रिटेन तथा अमेरिका जैसे अपने साझेदार देशों को ‘‘चरमपंथी खालिस्तानी विचारधारा’’ को तवज्जो न देने के लिए कहा है क्योंकि यह उनके रिश्तों के लिए ‘‘सही नहीं’’ है।

जानकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य बने रहें इसको लेकर कनाडा को और ज्यादा करने की जरूरत है। 

भारत ने कनाडाई उच्चायुक्त को तलब किया

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत ने कल अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए कनाडाई उच्चायुक्त कैमरन मैके को तलब किया था। भारत ने कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों पर एक ‘डिमार्शे’ (आपत्ति जताने वाला पत्र) जारी किया।

सूत्रों ने बताया कि उच्चायुक्त को सोमवार को विदेश मंत्रालय में तलब किया गया और एक ‘डिमार्शे’ सौंपा गया। ये कनाडा में होने वाली एकमात्र भारत-विरोधी घटना नहीं है।

इससे पहले जून में ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ की सालगिरह से पहले खालिस्तानी समर्थकों द्वारा एक परेड में भारत की दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का चित्रण करते हुए एक झांकी निकाली गई थी।

यह झांकी ओंटारियो के ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में निकाली गई थी। इस पर ओटावा में भारतीय उच्चायोग ने कनाडाई विदेश मंत्रालय के प्रति नाराजगी व्यक्त की थी।

आखिर क्यों मजबूर है ट्रूडो सरकार

कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादियों के पनपने की मुख्य वजह राजनीतिक है। कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सितंबर 2021 में शीघ्र चुनाव का आह्वान किया था।

उन्हें उम्मीद थी कि उनकी लिबरल पार्टी को हाउस ऑफ कॉमन्स में बहुमत हासिल करने में मदद मिलेगी। लेकिन 338 सदस्यीय हाउस ऑफ कॉमन्स के नतीजे उनकी उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे। उनकी लिबरल पार्टी को 20 सीटों का नुकसान हुआ, जिससे उनकी सीटें 177 से घटकर 157 रह गईं।

वहीं विपक्षी कंजर्वेटिव ने 121 सीटें, ब्लॉक क्यूबेकॉइस ने 32, एनडीपी ने 24, ग्रीन पार्टी ने 3 और एक निर्दलीय ने जीत हासिल की। हालांकि ट्रूडो ने अपने विरोधियों की तुलना में अधिक सीटें जीतीं, लेकिन उनकी सरकार अल्पमत में आ गई।

रिपोर्ट्स के मुताबिक कंजर्वेटिवों को उनसे ज्यादा वोट शेयर भी मिला है। इसलिए, सरकार बनाने के लिए न केवल उन्हें कम से कम 13 सांसदों की आवश्यकता थी, बल्कि अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अतिरिक्त समर्थन की भी जरूरत थी।

जिम्मी ने बांध रखे हाथ?

यहां सबसे बड़ा नाम आता है जगमीत सिंह ‘जिम्मी’ धालीवाल का। खालिस्तान समर्थक ‘जिम्मी’ धीरे-धीरे कनाडा की राजनीति के बड़े चेहरा बनते जा रहे हैं।

‘जिम्मी’ के नेतृत्व में, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) ने 2021 में 24 सीटें जीतीं, जिससे ट्रूडो सरकार बच गई। जानकारों का मानना है कि अपनी सरकार बचाए रखने के लिए ट्रूडो ‘जिम्मी’ को नाराज नहीं करना चाहते हैं जो “खुले तौर पर खालिस्तानी समर्थक है।” ट्रूडो उसका विरोध करने का जोखिम नहीं उठा सकते।

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, जानकारों ने बताया, “ट्रूडो एक बेहद बारीक रेखा पर चल रहे हैं और जगमीत सिंह द्वारा समर्थित अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। जगमीत का समर्थन उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। जगमीत सिंह को अब एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो तमाम मुद्दों पर विपक्ष द्वारा हमला किए जाने पर ट्रूडो सरकार का समर्थन करता है।”

2019 के बाद से, जगमीत सिंह खालिस्तानी मुद्दे के समर्थन में और अधिक मुखर हो गए। उन्होंने अब निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों के आंदोलन के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार पर भी निशाना साधा।

जब उन्होंने खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह के खिलाफ पंजाब पुलिस की कार्रवाई पर चिंता जताई और ट्रूडो के हस्तक्षेप की मांग की, तो उन्हें भारत में काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था।

साथियों की हत्या से बौखलाए हैं खालिस्तानियों 

भारत के सबसे वांछित आतंकवादियों में से एक रहे हरदीप सिंह निज्जर की पिछले महीने कनाडा में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी।

उस पर 10 लाख रुपये का इनाम घोषित था। निज्जर इकलौता नहीं हैं। कुछ और खालिस्तानी भी संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गए हैं। इसी से बौखलाए खालिस्तानियों ने सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में आगजनी की कोशिश की।

खालिस्तान समर्थकों ने दो जुलाई 2023 का एक वीडियो ट्विटर पर साझा किया, जिसमें सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में आगजनी की कोशिश करते हुए देखा जा सकता है। वीडियो में ‘‘हिंसा का जवाब हिंसा ही होता है’’, जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें कनाडा में स्थित ‘खालिस्तान टाइगर फोर्स’ (केटीएफ) के प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर की मौत से जुड़ी खबरें भी दिखायी गई हैं।

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