प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने 22 जून को अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं।
पीएम मोदी के दौरे से पहले अमेरिकी समिति ने ‘नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) प्लस’ में भारत को शामिल करने की सिफारिश की है।
नाटो प्लस (अभी नाटो प्लस 5) एक सुरक्षा व्यवस्था है जो नाटो और 5 गठबंधन राष्ट्रों ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इजराइल और दक्षिण कोरिया को वैश्विक रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए साथ लाती है।
भारत को इसमें शामिल करने से इन देशों के बीच खुफिया जानकारी निर्बाध तरीके से साझा हो पाएगी। साथ ही भारत की बिना किसी समय अंतराल के आधुनिक सैन्य टेक्नोलॉजी तक पहुंच बन सकेगी।
अमेरिका और चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के बीच सामरिक प्रतिस्पर्धा संबंधी सदन की चयन समिति ने भारत को नाटो प्लस में शामिल करने की सिफारिश की है।
साथ ही इस समिति ने ताइवान की प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के लिए नीति प्रस्ताव पारित किया है। इस समिति की अगुवाई अध्यक्ष माइक गालाघर और रैंकिंग सदस्य राजा कृष्णमूर्ति ने की।
अमेरिकी समिति के इस प्रस्ताव को चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ उठाया गया एक अहम कदम माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह करार ड्रैगन के खिलाफ भारत का ब्रम्हास्त्र साबित हो सकता है।
ताइवान की सुरक्षा भी एक अहम मसला
चयन समिति ने कहा, ‘चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सामरिक प्रतिस्पर्धा जीतने और ताइवान की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत है। इसके लिए अमेरिका को हमारे सहयोगियों और भारत समेत सुरक्षा साझेदारों के साथ संबंध मजबूत बनाना होगा।नाटो प्लस में भारत को शामिल करने से हिंद प्रशात क्षेत्र में सीसीपी की आक्रामकता को रोकने में मदद मिलेगी। साथ ही वैश्विक सुरक्षा मजबूत करने में अमेरिका और भारत की करीबी साझेदारी बढ़ेगी।’
भारतीय-अमेरिकी रमेश कपूर पिछले 6 साल से इस प्रस्ताव पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस सिफारिश को राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकार कानून 2024 में जगह मिलेगी और आखिरकार यह कानून बन जाएगा। फिलहाल अमेरिका और भारत के बीच कोई डिफेंस समझौता नहीं है।
हालांकि, यूएस ने भारत को अहम डिफेंस पार्टनर (MDP) का दर्जा दिया है। इसी के तहत भारत को संवेदनशील तकनीक का निर्यात हो रहा है।
नाटो प्लस को लेकर भारत के पक्ष में बाइडेन
समिति की सिफारिश के बाद भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने के लिए डिफेंस एक्ट में शामिल करना होगा। साथ ही इसे लेकर आधिकारिक रूप से कानून भी बनाना होगा।
इसके बाद सीनेट और अंतिम मंजूरी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से जारी की जाएगी। मालूम हो कि राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत के पक्ष में हैं।
चीन के साथ हालिया विवादों को देखते हुए बाइडेन एशिया में भारत के साथ और मजबूत रिश्ता कामय करना चाहते हैं।
जनरल माइक मिनेहन भी भारत से सहयोग के पक्ष में हैं। हालांकि, सीनेट की विदेश मामलों की कमेटी के अध्यक्ष बॉब मेनेन्डेज इसमें बाधा खड़ी कर सकते हैं। वह भारत-रूस S 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीद समझौते का विरोध करते रहे हैं।