देवेगौड़ा से लड़कर शुरुआत, तीन दशकों से संकटमोचक; क्यों कांग्रेस की जरूरत डीके शिवकुमार…

लंबी खींचतान के बाद डीके शिवकुमार कर्नाटक के डिप्टी सीएम बनने पर राजी हो गए हैं, जबकि मुख्यमंत्री का पद सिद्धारमैया को मिल गया है, जो पहले भी पूरे 5 साल तक सरकार चला चुके हैं।

कर्नाटक में कांग्रेस ने डीके शिवकुमार को भले ही डिप्टी सीएम बनाया है, लेकिन उनके हाथ में किसी भी तरह से सीएम से कम पावर नहीं है।

वह 2024 तक प्रदेश अध्यक्ष भी रहेंगे और डिप्टी सीएम होने के साथ ही अहम मंत्रालय भी संभालेंगे। इसके अलावा उनके कुछ साथियों को भी कैबिनेट में जगह दी जाएगी।

साफ है कि यह सरकार अकेले सिद्धारमैया की नहीं होगी बल्कि डीके शिवकुमार की भी बड़ी पकड़ रहेगी।

डीके शिवकुमार को सरकार और संगठन में इतना भाव मिलने की वजह यह है कि वह संकटमोचक की भूमिका निभाते रहे हैं।

21 साल की उम्र में कॉलेज से ही राजनीति की शुरुआत करने वाले डीके शिवकुमार को हमेशा बड़े मुकाबलों में लड़ने की आदत रही है। 1985 में उन्होंने पहला बड़ा राजनीतिक कदम उठाते हुए एचडी देवेगौड़ा के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा था।

भले ही हार गए, लेकिन उन्होंने 38 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर प्रभावित जरूर किया। सथनूर सीट से उन्हें यह हार मिली थी और फिर 4 साल बाद 1989 में जब देवेगौड़ा यहां से नहीं उतरे तो फिर डीके शिवकुमार ने ही बाजी मार ली और पहली बार विधायक बन गए। 

दो साल बाद ही यानी 1991 में डीके शिवकुमार की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर भी बन गई। वीरेंद्र पाटिल की तबीयत खराब हुई तो उनके लिए सीएम के तौर पर काम कर पाना संभव नहीं रहा।

उस दौर में डीके शिवकुमार ने पार्टी को संभाला और ए. बंगारप्पा को मुख्यमंत्री बनवाया। खुद कारागार मंत्री थे, लेकिन सरकार की स्थिरता में उनका अहम योगदान रहा।

इसी दौर में डीके शिवकुमार ने कारोबारी के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई। होटल, रियल एस्टेट और शिक्षण संस्थानों के बिजनेस में वह बढ़े तो दौलत भी कमाई। यहां तक कि वह अब कर्नाटक के सबसे अमीर नेताओं में से एक हैं। 

तीन दशकों से कांग्रेस के लिए संकटमोचक हैं DK

कांग्रेस के लिए वह संकटमोचक कई बार बने। 2002 में जब विलासराव देशमुख की महाराष्ट्र सरकार विश्वास मत का सामना कर रही थी तो कांग्रेस विधायकों को टूट से बचाने के लिए डीके शिवकुमार ने अपने रिजॉर्ट में ही रखा था।

15 साल बाद फिर से ऐसा ही मौका आया, जब गुजरात की राज्यसभा सीट पर चुनाव के दौरान 44 कांग्रेस विधायकों को उन्होंने बेंगलुरु में रुकवाया।

नतीजा यह रहा कि कड़े मुकाबले आखिर अहमद पटेल जीत गए थे।

यही नहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी, लेकिन जेडीएस के साथ तालमेल बनाते हुए डीके शिवकुमार को ही सरकार का श्रेय दिया जाता है।

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