अजय बोकिल
Valentine Day: इस साल 14 फरवरी को देश में ‘काउ हग डे’ (गोआलिंगन दिवस) मनाने का अपना फरमान भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ( एनीमल वेलफेयर बोर्ड आफ इंडिया) वापस लेकर ठीक ही किया, क्योंकि जिस देश में सदियों से गाय को देवता और माता का दर्जा हो, वहां गाय
को ‘गले लगाने का उत्सव’ मनाने का कोई औचित्य ही नहीं था। भारतीय संस्कृति में प्रेम ही पूजा और पूजा ही प्रेम है।
यहां सवाल है कि पशु कल्याण बोर्ड ने ऐसा परिपत्र क्योंकर जारी किया, इसका क्या औचित्य था और किस वजह से इसे वापस लेना पड़ा? उल्लेखनीय है कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने बीती 6 फरवरी को एक परिपत्र के जरिए चौंकाने वाली अपील की थी कि इस बार 14 फरवरी को सभी देशवासी गोआलिंगन दिवस के रूप में मनाएंगे। 14 फरवरी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘वेलेंटाइन डे’ के रूप में मनाया जाता है। पशु कल्याण बोर्ड का तर्क था कि गाय हमारे लिए श्रद्धा और प्रेम का विषय है, अत: इस प्रेम का इजहार सभी गोप्रेमी गाय को गले लगाकर करें।
बोर्ड का मानना था कि ऐसा करना हमारे लिए ‘भावनात्मक समृद्धि’ लेकर आएगा तथा इससे व्यक्तिगत और सामूहिक खुशी में इजाफा होगा। यही नहीं, केन्द्रीय पशुपालन एवं डेयरी मंत्री गिरीरराज सिंह ने इस अपील का स्वागत करते हुए कहा कि सभी को गायो से प्रेम करना चाहिए। गोआलिंगन दिवस अपने आप में अच्छी पहल है। हालांकि बोर्ड द्वारा परिपत्र वापस लिए जाने के बाद गिरिराजसिंह कहीं नजर नहीं आए। बताया जाता है कि पशु कल्याण बोर्ड की अपील प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद वापस ली गई।
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कहा यही जा रहा है कि इस अपील के पीछे बोर्ड की नीयत गोरक्षा की थी। क्योंकि बावजूद कई राज्यों में गोवध पर प्रतिबंध के, गोहत्या के मामले हो रहे हैं। 2017 के बाद से अब तक ऐसे 300 मामले पुलिस ने दर्ज किए हैं और करीब 600 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है। लेकिन लोगों और खासकर गोभक्तों की चौंकने की वजह यह थी कि ये ‘काउ हग डे’ दिवस उस ‘वेलेंटाइन डे’ पर मनाने की अपील की गई थी, जिसे हिंदूवादी ईसाइयों का उत्सव मानते हैं जबकि मूलत: यह प्रेम की अभिव्यक्ति का माध्यम है, भले ही वह ईसाई संत वेलेंटाइन के नाम पर हो। यह प्रेम केवल स्त्री पुरूष ही नहीं, किसी के बीच भी हो सकता है। लगता है कि पशु कल्याण बोर्ड ने भी शायद इसे इसी भावना में लिया होगा। उसे लगा कि जब मनुष्य दूसरे को गले लगा सकता है तो गाय को गले लगाने में हर्ज ही क्या है? वैसे भी गाय हमारे लिए माता समान है। यह बात अलग है कि लोग गाय को कैसे गले लगाते और कभी गाय बिदक गई तो पशु प्रेम का क्या होगा?
यहां एक आपत्ति शायद आलिंगन को लेकर भी रही। भारतीय संस्कृति में आलिंगन की तुलना में वंदन को ज्यादा महत्व दिया गया है। अर्थात यहां प्रेम की अभिव्यक्ति भी आदर और कृतज्ञ भाव में सिक्त है। आलिंगन में कदाचित वासना का भाव ( हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता) भी है। इसलिए अमूमन गले केवल बराबरी की उम्र वाले ही मिलते हैं। अभिवादन में लोग विनत होना ही पसंद करते हैं। जबकि पाश्चात्य और गैर भारतीय धर्मों में आलिंगन को ज्यादा महत्व दिया गया है। इस्लाम में तो हर छोटा-बड़ा गले ही लगता है। क्योंकि वह प्रेम के समान आदान-प्रदान का प्रतीक है। वहां कोई कृतज्ञ भाव नहीं है और न ही ऊंच नीच जैसा कुछ है। लेकिन इसमें किसी किस्म का पूजा भाव अथवा पूर्ण समर्पण का आग्रह भी नहीं है।
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भारतीय संस्कृति पूजा भाव को आलिंगन से श्रेष्ठतर मानती आई है। बल्कि यूं कहे कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह आलिंगन से कहीं आगे की स्थिति है, जहां पूर्ण समर्पण, पूर्ण स्वीकार और देवत्व का आभास है। गाय को हमारे पूर्वजों ने इसी श्रेणी में रखा है। वैदिक काल के आरंभ में शायद गायों की वो स्थिति नहीं थी। उत्तर वैदिक काल में गाय की ममता, उसके दूध के आर्थिक महत्व ने गाय को दूसरे पालतू पशुअों की तुलना में बहुत ऊंचा मुकाम दे दिया। हालांकि आज भी गायों की तुलना में भैंसे ज्यादा दूध देती हैं और संख्या में भी वो गायों की तुलना में सात गुना ज्यादा हैं, लेकिन भैंस को वो दर्जा कभी नहीं मिला, जो गाय को मिला है। गाय आर्यों के अर्थ तंत्र का एक मजबूत आधार थी। इसीलिए उसे कामधेनु और गोमाता कहा गया है। लेकिन बाद में उसके साथ देवत्व भी जुड़ गया।
ऋग्वेद में गाय को ‘अघ्न्या’ कहा गया है, अर्थात जिसे किसी भी स्थिति में नहीं मारा जा सकता। साथ में यह कामना की गई है कि गायें हरी घास और शुद्ध जल के सेवन से स्वस्थ रहें जिससे कि हम उत्तम सद् गुण,ज्ञान और ऐश्वर्य से युक्त हों। गोहत्या को मानव हत्या के समान जघन्य माना गया है। अथर्ववेद में गायों को समृद्धि का स्रोत बताया गया है। सुर और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन में निकले 14 रत्नो में एक गाय कामधेनु भी थी। यह एक पवित्र गाय थी, जिसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया। फिर मान्यता बनी कि गाय में तेंतीस करोड़ देवताअों का वास है। अत: गोपूजन करने से इन सभी देवताअों की पूजा स्वयमेव हो जाती है। इसी तरह गोरस, गोमूत्र, गोबर आदि में कई उपयोगी तत्व पाए जाते हैं। विशेष अवसरों पर गोदान करने की परंपरा भी है। वैसे भी भारत में महापर्व दीपावली के अवसर पर गोवर्द्धन पूजा के दिन मवेशियों और खास कर गायों की पूजा की जाती है। गोपूजन से कई प्रकार के सुख प्राप्त होना बताया गया है। इंदौर में केसरबाग रोड पर श्री सप्तमाता का मंदिर है, िजसमें सात गर्भवती गायों की पूजा की जाती है।
लेकिन इन तमाम बातों में गोआलिंगन का कहीं जिक्र नहीं है। तो फिर ये विचार कहां से आया? क्या गाय को हग करने से गाय ज्यादा खुश होगी या फिर इससे हमारी (विशेषकर हिंदुअोंकी) गाय के प्रति आस्था के इजहार का यह प्रकट रूप होगा? जहां तक आलिंगन की बात है तो दुनिया में हर साल 21 जनवरी को इंटरनेशनल हग डे ( अंतरराष्ट्रीय आलिंगन दिवस) मनाया जाता है। अमेरिका और यूके में इसे अधिकृत तौर पर मान्य किया गया है। इसकी शुरूआत अमेरिका में केविन जेबोर्नी ने की थी। मकसद था कि लोग इस दिन एक दूसरे को गले लगाएं, प्रेम का इजहार करें, लेकिन परस्पर आदर भाव और पर्सनल स्पेस को कायम रखने के साथ। इसमे संदेह नहीं कि मनुष्य के साथ पशुअोंसे भी प्रेम किया जाना चाहिए।
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लोग तो कुत्ते और बिल्ली जैसे पालतू प्राणियों को बिस्तर में साथ सुलाते हैं। गाय को भी आम तौर पर गोपालक पूरी आस्था के साथ रखते पालते हैं ( उन गोशालाअों को अलग रखें, जहां गोपालन भी धंधा है)। वजह यही है कि गाय केवल दुधारू प्राणी ही नहीं है, वह मोक्षदायिनी और वात्सल्यमयी भी है। इसीलिए वह गले लगाने से कहीं ज्यादा पूजनीय है। आराध्य है। इसलिए भी कि एक मां तो केवल अपने बच्चों का ही ध्यान रखती है, लेकिन गोमाता अपने बछड़े के साथ न जाने कितने दूसरे बच्चों को भी पोसती है। इसीलिए गाय को महज एक दूध देने वाले पशु से कहीं आगे देवताअोंका दर्जा दिया गया है। जिसे हम पूज ही रहे हैं, उसे आलिंगन देकर और क्या सिद्ध करना चाह रहे थे?
वरिष्ठ संपादक
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