गुरु गोविंद सिंह की याद में निकला शहीदी मार्च : सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु थे गोविंद सिंह, समाज ने बलिदान को किया याद
बिलासपुर :- बिलासपुर में सिक्ख समाज की ओर से गुरु गोविंद सिंह जी की शहीदी दिवस मनाया जा रहा है। इस अवसर पर गुरुद्वारा में शबद-कीर्तन और उनकी वीर गाथा की कथा सुनाई जा रही है।
दरअसल, सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ऐसे वीर संत थे, जिनकी मिसाल दुनिया के इतिहास में कम ही मिलती है। उन्होंने मुगलों के जुल्म के सामने कभी भी घुटने नहीं टेके और खालसा पंथ की स्थापना की थी।
शहीदी दिवस पर शुक्रवार को गोंडपारा गुरुद्वारा से साध-संगत ने शहीदी मार्च निकाला। इसमें समाज के बच्चों से युवा, बुजुर्ग व महिलाएं शामिल हुईं।
शहीदी मार्च सदर बाजार, गोलबाजार होते हुए दयालबंद स्थित गुरद्वारा पहुंची, जहां सांध-संगत ने गुरुद्वारा में मत्था टेका। फिर शबद-कीर्तन हुआ। हेड ग्रंथी ने गुरु के शहीदी की वीर गाथा की कथा सुनाई।
उन्होंने बताया कि श्री गुरु गोविंद सिंह के पूरे परिवार की शहादत के लिए जाना जाता है। विशेष तौर पर उनके चार साहिबजादों के लासानी इतिहास के लिए जिन्होंने देश कोम धर्म व सिद्धांतों की रक्षा के लिए वीरता पूर्वक शहादत दी।
जगह-जगह हुआ स्वागत
शहीदी मार्च पर समाज, क्लब और संस्थाओं ने पुष्पवर्षा की। मार्च का स्वागत समाजसेवियों ने जगह-जगह स्वागत किया। इस अवसर पर चंचल सलूजा, केशव बाजपई, तारेद्र उसराठे, अमित दुबे,
राकेश सेलरका, कृष्ण मुरारी, शांता फाउंडेशन के नीरज गेमनानी, नेहा तिवारी, प्रिया गुप्ता, तविन्दर भाटिया, मंजीत टुटेजा, दानेश्वर राजपूत सहित अन्य मौजूद रहे।
बता दें यही वह सप्ताह है जब गुरु गोबिंद साहिब ने देश व धर्म की रक्षा के लिए अपने परिवार की कुर्बानी दे दी थी। 23 दिसंबर को देश भर में गुरु गोविंद सिंह का शहीदी दिवस मनाया जाता है।
गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाएं
- धरम दी किरत करनी, दसवंड देना यानी अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दें।
- कम करन विच दरीदार नहीं करना यानी काम में खूब मेहनत करें और कोताही न बरतें।
- धन, जवानी, तै कुल जात दा अभिमान नै करना यानी अपनी जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर घमंडी होने से बचें।
- गुरुबानी कंठ करनी: गुरुबानी को कंठस्थ करें।
खालसा पंथ की स्थापना की थी
गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। आनंदपुर साहिब में वैशाखी के अवसर पर एक धर्मसभा के दौरान उन्होंने पंच प्यारों को चुना। उनके ही निर्देश पर सिखों के लिए खालसा पंथ के प्रतीक के तौर पर 5 ककार यानी केश, कंघा, कृपाण, कच्छ और कड़ा अनिवार्य हुआ।