भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर अफगानिस्तान को लेकर चिंता जाहिर की है।
भारत ने वर्ल्ड कम्यूनिटी से कहा है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकियों को पनाह या ट्रेनिंग के लिए न होने पाए।
खासतौर पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन जिन पर यूएन सिक्योरिटी काउंसिल ने प्रतिबंध लगा रखा है, उन्हें यहां शरण न मिले।
संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान के उप स्थायी प्रतिनिधि राजदूत आर रवींद्र ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक सत्र के दौरान अफगानिस्तान से संबंधित नई दिल्ली की सुरक्षा चिंताओं को व्यक्त किया।
गौरतलब है कि पाकिस्तान से जैश और लश्कर के आतंकी अफगानिस्तान में शिफ्ट किए गए हैं।
भारत ने उठाया यह सवाल
यूएन जनरल असेंबली में गुरुवार को जर्मनी ने एक प्रस्ताव उठाया। इस प्रस्ताव में अफगानिस्तान में महिलाओं के मानवाधिकार, प्रतिनिधि सरकार स्थापित करने में फेल होने और खराब आर्थिक और सामाजिक हालात पर सवाल उठाए गए।
इस प्रस्ताव के पक्ष में 116 वोट डाले गए, वहीं 10 वोट विपक्ष में पड़े, वहीं 67 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
इस दौरान रविंद्र ने कहा कि भारत यूएनएससी निगरानी टीम द्वारा निभाई गई उपयोगी भूमिका को नोटिस करता है।
साथ ही उम्मीद करता है कि यह संगठन उन सभी आतंकवादी समूहों की निगरानी और रिपोर्ट जारी रखे जो अफगानिस्तान को अन्य देशों को निशाना बनाने के लिए एक आधार के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
पाकिस्तान से अफगानिस्तान आए हैं लश्कर और जैश के लड़ाके
बता दें कि मॉनिटरिंग टीम ने हालिया वर्षों में अफगानिस्तान में मौजूद लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद फाइटर्स से बात की है।
वहीं कुछ अन्य रिपोर्ट्स में भी कहा गया है कि दोनों प्रतिबंधित संगठनों ने अपने लड़ाकों को अफगानिस्तान भेज दिया है। यह कदम पाकिस्तान पर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के बढ़ते दबाव के बाद उठाया गया है।
इन दबावों के बाद पाकिस्तान में मौजूद लश्कर और जैश ने अपने लड़ाकों को अफगानिस्तान शिफ्ट कर दिया है।
रविंद्र ने कहा कि अफगानिस्तान के प्रति हमारा रवैया ऐतिहासिक दोस्ती और खास रिश्तों के मुताबिक होगा। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का पक्षधर रहा है।