केरल हाई कोर्ट ने कोझिकोड जिले में यौन उत्पीड़न के दो मामलों में एक आरोपी की जमानत मंजूर करते वक्त अपने आदेश में विवादास्पद टिप्पणी करने वाले एक सत्र न्यायाधीश के तबादले पर शुक्रवार को रोक लगा दी।
जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति मोहम्मद नियास की खंडपीठ ने हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार की ओर से पिछले महीने जारी आदेश को बरकरार रखने वाली एकल पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली सत्र न्यायाधीश एस. कृष्णकुमार की याचिका पर विचार करते हुए स्थानांतरण पर रोक लगा दी।
अदालत ने मामले की सुनवाई 26 सितम्बर तक के लिए स्थगित कर दी और उस दिन तक प्रतिवादियों को जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘(याचिका में) जैसा अनुरोध किया गया है उसके अनुसार तब तक के लिए (तबादले पर) अंतरिम रोक लगाई जाती है।’
कृष्णकुमार (59) ने एकल पीठ के समक्ष अपनी याचिका में कहा था कि वह छह जून, 2022 से कोझिकोड के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे थे और हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार द्वारा जारी उनका तबादला आदेश स्थानांतरण मानदंड के खिलाफ था।
एकल न्यायाधीश ने एक सितम्बर को उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि स्थानांतरण आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि जिस श्रम अदालत के पीठासीन अधिकारी के पद पर उनका तबादला किया गया था, वह जिला न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर था।
जज ने एकल पीठ के आदेश को दी है चुनौती
एकल पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली अपनी याचिका में कृष्णकुमार ने दलील दी कि अदालत का यह निष्कर्ष कि स्थानांतरण मानदंड केवल एक दिशानिर्देश है और यह स्थानांतरित कर्मचारी को कोई अधिकार प्रदान नहीं करता, स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।
न्यायाधीश ने अपनी याचिका में कहा कि एकल पीठ को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए था कि नियमों के अनुसार, न्यायिक अधिकारी को तीन साल की अवधि के दौरान स्थानांतरित किया जा सकता है, बशर्ते न्यायिक प्रशासन के हित में यह आवश्यक हो और उसने (एकल पीठ ने) यह नहीं साबित नहीं किया है कि अपीलकर्ता का तबादला न्यायिक प्रशासन के हित में है।
आरोपी अग्रिम जमानत के लिए पहुंचा था कोर्ट
दो यौन उत्पीड़न मामलों के आरोपी ‘सिविक’ चंद्रन, की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर अपने दो आदेशों में पीड़िताओं के बारे में न्यायाधीश कृष्णकुमार की टिप्पणियों ने एक विवाद को जन्म दिया था।
उन्होंने एक मामले में जमानत अर्जी पर विचार करते हुए कहा था कि यह विश्वास करने योग्य नहीं प्रतीत होता है कि पीड़िता के अनुसूचित जाति से संबंधित होने के बावजूद आरोपी उसके बदन को स्पर्श करेगा।
पीड़िता के पहनावे पर की थी विवादित टिप्पणी
न्यायाधीश ने यौन उत्पीड़न के एक अन्य मामले में पीड़िता के पहनावे के बारे में भी विवादास्पद टिप्पणी की थी।
अपने 12 अगस्त के आदेश में, अदालत ने कहा था कि जमानत अर्जी के साथ आरोपी द्वारा पेश की गई शिकायतकर्ता की तस्वीर से पता चलता है कि उसने खुद यौन उत्तेजक तरीके से कपड़े पहने थे और यह विश्वास करना असंभव है कि 74 वर्ष की आयु का व्यक्ति और शारीरिक रूप से अक्षम कभी भी इस तरह का अपराध करेगा।
केरल सरकार ने दोनों मामलों में सिविक चंद्रन को जमानत देने के सत्र अदालत के आदेशों को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का रुख किया है।