उत्तर प्रदेश के उन्नाव में रेप केस (Unnao Rape Case) की पीड़िता ने न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अर्जी दाखिल कर दी है।
इस मामले पर शीर्ष अदालत शुक्रवार (2 सितंबर) को सुनवाई करेगी। स्कूल की फर्जी टीसी दिखाकर रेप के समय खुद को नाबालिग साबित करने के आरोप में उन्नाव कोर्ट में चल रही सुनवाई में कुलदीप सेंगर (Kuldeep Senger) के वकील ने मुकदमे में फर्जी दस्तावेज तैयार कर फंसाने का आरोप लगाया है।
इसी सिलसिले में कोर्ट ने पहले रेप पीड़िता के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। लेकिन, 3 जुलाई को पीड़िता कोर्ट में हाजिर नहीं हुई।
जिसके बाद कोर्ट में गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। अब रेप पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में गैर-जमानती वारंट पर रोक लगाने के लिए याचिका दाखिल की है। पीड़िता ने मामले के ट्रायल को दिल्ली ट्रांसफर कराने की मांग की है।
चर्चित माखी कांड में साल 2017 में कुलदीप सिंह सेंगर पर अपहरण और रेप का आरोप लगा था। जिस वक्त ये घटना हुई थी, उस वक्त युवती नाबालिग थी।
उम्र का सबूत देने के लिए युवती ने स्कूल का ट्रांसफर सर्टिफिकेट कोर्ट में दिखाया था। इसी TC के जरिए उसने साबित किया कि रेप के समय उसकी उम्र 18 साल से कम थी।
लेकिन, आरोपी पक्ष के वकील ने टीसी को फर्जी तरह से तैयार करने का कोर्ट में दावा किया था।
शीर्ष अदालत में दायर की गई स्थानांतरण याचिका में आरोप लगाया गया है कि पीड़ित लड़की के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में बचाव पक्ष को आगे बढ़ाने के उल्टे मकसद से उन्नाव अदालत में “जवाबी न्यायिक कार्यवाही” शुरू की गई है।
दोषसिद्धि और उम्रकैद के खिलाफ सेंगर की अपील दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है, जिसने हाल ही में सीबीआई से जवाब मांगा गया था।
ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को आईपीसी की धारा 376 (2) सहित विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था, जो एक लोक सेवक से संबंधित है और अपनी आधिकारिक स्थिति का लाभ उठाता है।
अदालत ने उसे आजीवन कारावास की अधिकतम सजा सुनाई थी, जिसमें कहा गया था कि दोषी “अपने प्राकृतिक जैविक जीवन के शेष” के लिए जेल में रहेगा।
उस पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। 5 अगस्त, 2019 को शुरू हुए मुकदमे को उन्नाव से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को लिखे गए बलात्कार पीड़िता के पत्र का संज्ञान लिया था।
एक अगस्त, 2019 को उन्नाव बलात्कार की घटना के संबंध में दर्ज सभी पांच मामलों को लखनऊ की एक अदालत से दिल्ली की अदालत में दैनिक सुनवाई करने और 45 दिनों के भीतर परीक्षण पूरा करने के निर्देश के साथ स्थानांतरित कर दिया था।