उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को सेना (Indian Army) के एक जवान को पेंशन देने के सशस्त्र बल अधिकरण (एएफटी) के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसे शराब पर निर्भरता के कारण सेवामुक्त कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने केंद्र की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि यह एक मिसाल नहीं बननी चाहिए और कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर वह एएफटी के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर रही है।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने कहा कि एएफटी के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए, अन्यथा यह एक मिसाल बन जाएगी और इससे सशस्त्र बल में अनुशासनहीनता बढ़ेगी।
पीठ ने कहा कि वह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर एएफटी के आदेश को बरकरार रख रही है, एक अगस्त को, शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे न्याय के मानवीय पक्ष को देखना होगा और केंद्र से सेना के जवान को विकलांगता पेंशन जारी रखने के लिए एक अपवाद बनाने का आग्रह किया, शराब पर निर्भरता के कारण जवान को सेवा से मुक्त कर दिया गया था।
न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश दीवान से निर्देश लेने के लिए कहा था।
शीर्ष अदालत सशस्त्र बल अधिकरण के आदेश के खिलाफ केंद्र द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने कारगिल युद्ध में लड़ने वाले जवान नागिंदर सिंह को पेंशन प्रदान करने का आदेश दिया।
सुनवाई की शुरुआत में दीवान ने कहा कि कि अगर उन्हें अनुशासनात्मक आधार पर सेवा से मुक्त किया जाता है, तो पेंशन नहीं दी जा सकती और इस मामले में शराब पर निर्भरता के कारण सेवा से मुक्त किया गया।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकार को जवान और उनके परिवार की परिस्थितियों को देखते हुए इस मुद्दे को व्यापक दृष्टिकोण से देखना चाहिए।
गंभीर अनुशासनात्मक मुद्दा
दीवान ने कहा था कि अगर उस मापदंड को लागू किया जाता है, तो अन्य मामले भी सामने आएंगे और शराब पर निर्भरता सशस्त्र बलों में एक गंभीर अनुशासनात्मक मुद्दा माना जाता है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने दीवान को निर्देश लेने और एक अपवाद बनाने का प्रयास करने के लिए कहा था, ताकि वह विकलांगता पेंशन प्राप्त करना जारी रख सके।