अलकायदा चीफ अल जवाहिरी की मौत के बाद पाकिस्तान और तालिबान भिड़ गए हैं।
जहां एक तरफ तालिबान का दावा है कि आईएमएफ से मदद की लालच और अमेरिकी गुड बुक्स में आने के लिए पाकिस्तान ने जवाहिरी को अमेरिका के हाथों बेच दिया।
वहीं दूसरी तरफ यह बातें भी सामने आ रही हैं कि जवाहिरी को मरवाने में तालिबान की भूमिका है, इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि तालिबान नहीं चाहता कि अफगानिस्तान में फिर से अलकायदा का उभार हो।
जवाहिरी को मारे जाने की सूचना आते ही, इसको लेकर तमाम तरह के दावे-प्रतिदावे सामने आने लगे थे। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जवाहिरी के मारे जाने में पाकिस्तान का हाथ है। उनके मुताबिक ऐसा करके पाकिस्तान एक बार फिर से अमेरिका की गुड बुक्स में आना चाहता है।
इसके अलावा जवाहिरी की मौत के बदले में उसे आईएमएफ से अच्छी फंडिंग की भी उम्मीद है। अफगानी लीडर अमरुल्ला सालेह के मुताबिक पाकिस्तान का यही इतिहास रहा है। वह वित्तीय मदद और सुरक्षा के लिए अमेरिका की तरफ झुकता रहा है।
पाकिस्तान का यह है स्वार्थ
दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुलमैन भी जवाहिरी को मारने में पाकिस्तान की भूमिका से इंकार नहीं करते। उन्होंने इस संबंध में कई ट्वीट्स किए हैं। एक ट्वीट में वह कहते हैं कि क्या यह संभव है कि तालिबान की जानकारी के बिना जवाहिरी अफगानिस्तान में मौजूद रहा होगा?
वहीं दूसरी तरफ माइकल लिखते हैं कि क्या अमेरिका को कोई मदद मिली होगी? इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के स्पाई चीफ के हालिया अमेरिकी दौरे की तरफ भी इशारा करते हैं।
एक अन्य ट्वीट में माइकल ने लिखा है कि कि जब अमेरिका ने बिन लादेन के खिलाफ कार्रवाई की थी, तब पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते काफी ज्यादा खराब हो गए थे। अब अगर अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद से जवाहिरी को ठिकाने लगाने में सफलता पाई है तो दोनों देशों के रिश्ते को एक नई ऊंचाई मिल सकती है।
तालिबान की भूमिका से भी इंकार नहीं
वहीं कुछ अन्य विश्लेषकों ने अलकायदा प्रमुख अयमान अल जवाहिरी को मारे जाने में तालिबान की भूमिका से इंकार नहीं करते। इन विश्लेषकों का दावा है कि तालिबान नहीं चाहता था कि अफगानिस्तान में फिर से अलकायदा का उभार हो।
हो सकता है इसी वजह से उसके किसी गुट ने अमेरिका को उससे जुड़ी खुफिया जानकारी दी हो। बताया जा रहा है कि तालिबान के कुछ गुट पाकिस्तान को पसंद नहीं करते हैं। एक अन्य विशेषज्ञ ने भी यह आशंका जताई कि हो सकता है तालिबान नेतृत्व में टकराव हो और किसी ने जवाहिरी के मामले में अमेरिका की खुफिया मदद की हो।