शबरी जयंती 2025: जानें माता शबरी की कहानी, जिनके जूठे बेर भगवान राम ने खाए…

प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

लोकमानस में शबरी से जुड़ी एक लोक कथा अत्यंत प्रचलित है।

कहते हैं कि जब राम, भक्ति में डूबी शबरी के जूठे बेर खा रहे थे तो बीच-बीच में वे लक्ष्मण को भी बेर खाने को दे रहे थे। लेकिन लक्ष्मण ने राम द्वारा दिए गए शबरी के जूठे बेर नहीं खाए और फेंक दिए।

जब राम ने यह देखा तो उन्हें यह भक्त शबरी का अपमान लगा। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि जिस शबरी की भक्ति का अनादर करते हुए, वह बेर फेंक रहे हैं, वही बेर एक दिन संकट के समय उनके प्राणों की रक्षा करेंगे।

राम-रावण युद्ध के समय जब लक्ष्मण मेघनाद की शक्ति से मूर्छित हुए थे, तब इन्हीं बेरों ने मृत संजीवनी के रूप में लक्ष्मण को पुनर्जीवन दिया था।

पौराणिकमान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान राम की शबरी से भेंट हुई थी।

इस दिन राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन माता शबरी को मोक्ष मिला था। इसके पीछे यही भाव है कि बरसों की प्रतीक्षा के बाद जब उनका भगवान से मिलन हुआ तो इस मिलन के बाद उन्हें मुक्ति मिल गई, क्योंकि ईश्वर से मिलने के बाद कोई इच्छा या कामना शेष नहीं रहती।

सभी प्रकार की कामनाओं की समाप्ति ही मुक्ति है। यहां तो शबरी की सिर्फ एक ही कामना थी, प्रभु राम से मिलने की। ऐसा माना जाता है कि आज के गुजरात के डांग जिले के सुबीर गांव में प्रभु राम और शबरी की भेंट हुई थी। इस स्थान पर इनकी स्मृति में शबरीधाम मंदिर है, जिसे देखने हर वर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि शबरी का नाम ‘श्रमणा’ था। इनका संबंध भील समुदाय की शबर जाति से था। इनके पिता का नाम अज और मां का नाम इंदुमति था।

इनके पिता भीलों के मुखिया थे। इनके पिता ने इनका विवाह एक भील कुमार से तय कर दिया। उस समय विवाह के अवसर पर जानवरों की बलि देने की प्रथा थी। इस प्रथा का भील कुमारी शबरी ने विरोध किया और इस प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने विवाह नहीं किया।

इस घटना के पश्चात वे वन में जाकर मतंग ऋषि के आश्रम में रहने लगीं। उनके सेवा भाव से प्रसन्न होकर मतंग ऋषि ने कहा कि एक दिन भगवान राम स्वयं तुम्हारे पास आएंगे और तुम्हारा उद्धार करेंगे। बस, इस विश्वास के भरोसे शबरी प्रभु राम की प्रतीक्षा करने लगीं।

शबरी से जुड़ी एक अन्य कथा जनमानस में खूब प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार शबरी अपने आश्रम के पास ही एक तालाब पर पानी लेने गई। तभी एक ऋषि ने उनका अपमान करते हुए उन्हें तालाब से पानी भरने के लिए मना कर दिया। यही नहीं, उन्होंने क्रोध में आकर शबरी को पत्थर मार दिया, जिसकी चोट से खून बहने लगा। उस खून की एक बूंद तालाब में गिर गई।

इससे पूरे तालाब का पानी लाल रंग का हो गया। इसके लिए भी ऋषि ने शबरी को ही दोषी ठहराया। इसके बाद सभी ऋषियों के प्रयास के बावजूद पानी का रंग लाल ही रहा। इस घटना के कई वर्ष पश्चात जब राम, लक्ष्मण के साथ सीता को खोजते हुए वहां आए तो उन्हें भी इस घटना का पता चला।

राम के पैर डालने पर भी तालाब का पानी साफ नहीं हुआ, तब उन्होंने ऋषियों से वहां शबरी को लाने के लिए कहा। शबरी जब तालाब के पास पहुंची तो उनकी ठोकर से कुछ धूल उस तालाब में गिर गई और देखते-ही-देखते तालाब का पानी पहले की तरह साफ हो गया। कहा जाता है कि भक्ति करो तो शबरी जैसी कि भगवान स्वयं उन्हें मुक्ति दिलाने आए।

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