दिल्ली ही नहीं, करोड़ों की सांसों पर मंडरा रही जहरीली हवा; बच्चों के लिए बढ़ता खतरा…

नई दिल्ली, ढाका, बैंकॉक, जकार्ता… ये सिर्फ नाम नहीं, बल्कि उन शहरों की फेहरिस्त है जहां लोग हर रोज जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं।

भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में करीब 99% आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मानकों पर खरी नहीं उतरती। वायु प्रदूषण के कारण हर साल करीब 70 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती है।

एपी में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अक्सर लोग मानते हैं कि अगर आसमान साफ है, तो हवा भी साफ होगी, लेकिन यह सच नहीं है।

ऊर्जा नीति संस्थान की तनुश्री गांगुली कहती हैं, “नीला आसमान आपको साफ़ हवा की गारंटी नहीं देता।”

दरअसल, वायु प्रदूषण मुख्य रूप से ईंधन जलाने से पैदा होता है जैसे – कोयला, डीजल, पेट्रोल, लकड़ी या कृषि अवशेष जलाना।

इस दौरान निकलने वाले बारीक कण (पीएम 2.5 और पीएम 10) फेफड़ों में जाकर गंभीर बीमारियों को जन्म देते हैं।

बीमारियों की जड़ बन रही जहरीली हवा

वायु प्रदूषण दुनियाभर में समय से पहले मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है, जो हाई ब्लड प्रेशर के बाद आता है। यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र के 50 करोड़ से ज्यादा बच्चे हर दिन जहरीली हवा में सांस लेते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के अनुसार, वायु प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों और मानसिक विकास को प्रभावित करता है। बड़े लोगों में यह अस्थमा, दिल का दौरा और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा देता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जब वायु गुणवत्ता खराब हो, तो घर के अंदर ही रहें और एन95 जैसे अच्छे मास्क का इस्तेमाल करें। हालांकि, यह हमेशा संभव नहीं होता, खासकर उन लोगों के लिए जो बाहर काम करते हैं।

घर के अंदर भी हवा प्रदूषित हो सकती है, खासकर अगर खाना बनाते समय वेंटिलेशन ठीक न हो या अगर अगरबत्ती और मोमबत्तियां ज्यादा जलाई जाएं।

एयर प्यूरिफायर कितने कारगर?
एयर प्यूरिफायर प्रदूषण को कम कर सकते हैं, लेकिन उनकी अपनी सीमाएं हैं। ये छोटे कमरों में ही प्रभावी होते हैं और सभी लोग इन्हें खरीद भी नहीं सकते।

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट के डैनी जारूम का कहना है कि जो लोग सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं, वे महंगे एयर प्यूरिफायर नहीं खरीद सकते।

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