मकर संक्रांति वह दिन है जब भीतर का देवत्व जागृत होता है…

प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

अध्यात्म मार्ग में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। संक्रांति से मतलब है— सत्य के संग क्रांति, संत के संग क्रांति। जो ज्ञान के संग है, सत्य के संग है, संत के संग है, वह यह जानता है कि मुझे बाहर कुछ ढूंढ़ने की जरूरत है ही नहीं।

मेरा आनंद तो मुझ ही में है, क्योंकि मैं अस्ति-भाति-प्रिय स्वरूप हूं। ये देह मैं नहीं हूं तो देह का जन्म मेरा नहीं, देह का मरण मेरा नहीं, देह का रोग मेरा नहीं, देह की अशुद्धि मेरी नहीं।

मैं मन नहीं तो मन के पाप-पुण्य मैं नहीं, मेरे नहीं। मन की कमी, कमजोरी मैं नहीं, मेरी नहीं। मन के अशुद्ध विचार मैं नहीं, मेरे नहीं।

मैं तो नित्यमुक्त, सच्चिदानंद, अनादि अनंत, निर्वचनीय विलक्षण स्वरूप हूं। बाहर संसार में जो दिखता है, वो दिखती हुई हर वस्तु मिथ्या है, बदलने वाली है। जो बदलने वाला है, उसके साथ मैं अपना मन क्यों जोड़ूं?

ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है। मकर राशि शनि की राशि है। शनि नाम है— तपस्या का। शनि नाम है—त्याग का। शनि नाम है— खोज का। शनि नाम है—संन्यास का।

शनि नाम है—वीतरागता का। जिनको इसकी समझ नहीं है, उनको शनि खराब लगता है। लेकिन धर्म की, अध्यात्म की दृष्टि से शनि बहुत उत्तम है।

शनि वैराग्य का चिह्न है। इसे शिव का अंश भी बोलते हैं। शनि सूर्य-पुत्र भी हैं। शिवांश भी है। इसका अर्थ यह हुआ कि सूर्य जैसा तेज, तप और उज्ज्वलता जीवन में आ सकते हैं। सूर्य का शरीर, मन और समाज की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान है।

मकर संक्रांति के दिन के विषय में पुराण और ज्योतिष शास्त्र कहते हैं कि इस दिन से उत्तरायण पक्ष शुरू होता है। उत्तरायण पक्ष अर्थात देवताओं का दिन। दक्षिणायन पक्ष अर्थात देवताओं की रात्रि।

जैसे आप रात्रि में शयन करते हैं, ऐसे ही दक्षिणायन में देवताओं की यह निद्रा का समय होता है। रचनात्मकता के लिए दिन का समय होता है, रात नहीं होती। इस प्रकार उत्तरायण पक्ष एक शुभ प्रारंभ माना जाता है क्योंकि आज से देवता अपनी नींद त्यागेंगे और वे जागेंगे। उनके जागने का अर्थ है कि देव शक्तियों का प्रभाव इस विश्व मेंअधिक हो जाएगा।

संक्रांति भौतिक घटना के साथ-साथ भीतर घटित होने वाली घटना है। जीवन में यह बात समझ आ जाना कि वास्तव में हम अकेले थे, हैं और रहेंगे, कोई हमारा नहीं है, हम किसी के नहीं हैं, एक बहुत बड़ी क्रांति है।

यह बात गहरे से बुद्धि में बैठ जाना ही अपने आप में बहुत बड़ी क्रांति है। यह क्रांति किसी संत के संग ही होती है। हालांकि कर्मकांड की दृष्टि से बोलते हैं कि संक्रांति के दिन बहते हुए नदी के जल में स्नान करें। सभी शुभ कर्मों को करें।

मकर संक्रांति पर जैसे देवता जाग रहे हैं, ऐसे तुम भी अपने अंदर देवत्व को जगाओ। देवत्व क्या है? मन की समता, इंद्रियों को नियंत्रित रखना, मन में हिंसा के भाव न उठने देना, क्रोध से बचना, अपनी आसक्तियों को, अपनी ममता को तोड़ना, ईश्वर भजन करना, सत्संग करना, संत सेवा करना, संतों के सान्निध्य में रहना, ये सब अपने देवत्व को जाग्रत करने जैसा है। ऐसे संयमित मन के साथ जब वह साधना करता है तो साधना भी अच्छी ही होती है।

जिसका मन बिखरा हुआ है, जिसका अपने मन पर, अपनी इंद्रियों पर संयम नहीं है। ऐसा व्यक्ति आंख बंद करता है— ध्यान के लिए, पर याद कपड़े आ रहे हैं, गहने आ रहे हैं, कार आ रही है, वस्तुएं आ रही हैं।

मन की दोहरी चाल हो गई। भजन के लिए बैठ भी रहा है, पर मन भजन में है ही नहीं। मन को किसी के साथ भी इतना मत अटकाओ कि वह तुम्हें नचाता रहे। मन को इस अज्ञान की निद्रा से बाहर निकालना बहुत कठिन है। मन के लिए गिरना बहुत आसान है।

मन के लिए अज्ञान की इस नींद को त्यागना बहुत मश्किल है, पर यही मुश्किल कार्य करने का संकल्प एक साधक करता है। वह अपनी संकल्प शक्ति को बढ़ाता है, गुरु की कृपा और शक्ति को भी प्राप्त करता है।

जब साधक की संकल्प शक्ति और गुरु कृपा का संगम होता है तो साधक के भीतर संक्रांति घटित होती है और ज्ञान का, वैराग्य का सूर्य उदित होता है।

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