1.5 किलोमीटर की दूरी पर हैं दोनों सैटेलाइट, इस दिन आएंगी पास; ISRO जल्द करेगी डॉकिंग की तैयारी…

भारत अपने पहले ही प्रयास में दो एक्टिव सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में डॉक करने की तैयारी में है।

इसरो के चेयरमैन डॉ. एस सोमनाथ ने पुष्टि की है कि डॉकिंग कुछ ही दिनों में हो सकती है।

इसरो ने शुक्रवार को कहा कि वह ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट’ (स्पैडेक्स) से संबंधित जिन दो उपग्रहों (सैटेलाइट) को एक साथ जोड़ने की उम्मीद कर रहा है, वे 1.5 किलोमीटर की दूरी पर हैं और 11 जनवरी को उन्हें काफी करीब लाया जाएगा।

7 और 9 जनवरी को डॉकिंग के दो प्रयास असफल रहे थे, जिसके बाद इसे रोक दिया गया था। लेकिन अब वैज्ञानिकों को पूरा भरोसा है कि यह प्रयोग जल्द ही सफल होगा।

इसरो के चेयरमैन डॉ. एस सोमनाथ ने पुष्टि की है कि डॉकिंग कुछ ही दिनों में हो सकती है।

डॉ. सोमनाथ ने आकाशवाणी से बात करते हुए कहा, “दोनों सैटेलाइट्स बहुत अच्छी स्थिति में हैं और यदि सबकुछ योजना के अनुसार चलता रहा तो डॉकिंग अगले कुछ दिनों में कर ली जाएगी।”

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘अंतरिक्षयान 1.5 किमी की दूरी पर हैं और ‘होल्ड मोड’ पर हैं।

कल सुबह तक इनके 500 मीटर की और दूरी तय करने की योजना है।’’ यह घोषणा अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा यह साझा किए जाने के एक दिन बाद आई कि उपग्रहों के बीच विचलन पर काबू पा लिया गया है तथा उन्हें एक-दूसरे के करीब लाने के लिए धीमी गति से विचलन पथ पर रखा गया है।

डॉकिंग प्रक्रिया के दौरान चेजर सैटेलाइट को टार्गेट सैटेलाइट के पास लाया जाएगा। यह दूरी 5 किमी, 1.5 किमी, 500 मीटर, 225 मीटर, 15 मीटर और 3 मीटर तक घटाई जाएगी।

अंत में, 10 मिलीमीटर प्रति सेकंड की गति से चेजर सैटेलाइट टार्गेट पर डॉक करेगा। इस मिशन में इसरो ने स्वदेशी तकनीक “भारतीय डॉकिंग सिस्टम” का इस्तेमाल किया है। इस तकनीक पर इसरो ने पेटेंट भी कराया है।

डॉ. सोमनाथ ने कहा, “यह मिशन हमारे लिए एक यात्रा जैसा है। डॉकिंग का अंतिम लक्ष्य जरूर है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में हमने बहुत कुछ सीखा है। सैटेलाइट्स को एक तय दूरी पर साथ में उड़ाना भी एक महत्वपूर्ण ज्ञान है।

अब तक सबकुछ बहुत अच्छे से चल रहा है।” SpaDeX की सफलता न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को साबित करेगी, बल्कि भविष्य के मिशन, जैसे चंद्रयान 4, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और गगनयान के लिए भी रास्ता बनाएगी।

भारत का यह प्रयोग अंतरिक्ष में देश की नई उपलब्धियों को स्थापित करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

सैटेलाइट डॉकिंग का महत्व

मिशन विस्तार: डॉकिंग के बाद सैटेलाइट्स साझा संसाधनों (जैसे ईंधन, डेटा और ऊर्जा) का उपयोग कर सकते हैं।

अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण: डॉकिंग तकनीक का उपयोग अंतरिक्ष स्टेशन (Space Station) बनाने में किया जाता है, जैसे कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS)।

भविष्य के मिशन: यह तकनीक चंद्रमा और मंगल जैसे स्थानों पर मानव मिशन के लिए आवश्यक है।

भारत में सैटेलाइट डॉकिंग

भारत में, इसरो (ISRO) ने “स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट” (SpaDeX) के तहत पहली बार दो सैटेलाइट्स को डॉक करने की योजना बनाई है। यह प्रक्रिया भारत को चीन, अमेरिका और रूस जैसे देशों की कतार में ला सकती है, जिन्होंने पहले से यह तकनीक विकसित कर ली है।

सैटेलाइट डॉकिंग विज्ञान और तकनीक का एक शानदार उदाहरण है, जो अंतरिक्ष अन्वेषण को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद करता है।

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