गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी और कई कलाओं में निपुणता का संदेश दिया…

 प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

सिख धर्म के 10वें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी की जयंतीहर साल पौष माह केशुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती है।

गुरु गोविंद सिंह जी का आज 358 वां प्रकाश पर्व है।

गुरु गोबिंद सिंह जी शौर्य और साहस के प्रतीक रहे हैं।गुरु गोविंद सिंह जी जयंती कोको प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।गुरु गोविंद सिंह जी ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्णकिया था।

खालसा पंथ की स्थापना

गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु रहे। गुरु गोविंद सिंह ने अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी।कहते हैं कि एक दिन जब सभी लोग इकट्ठा हुए तो गुरु गोबिंद सिंह ने कुछ ऐसी मांग कर दी कि वहां सन्नाटा छा गया।

सभा में मौजूद लोगों ने गुरु गोबिंद ने उनका सिर मांग लिया। गुरु गोबिंद सिंह ने कहा कि उन्हें सिर चाहिए। जिसके बाद एक के बाद एक पांच लोग उठे और बोले कि सिर प्रस्तुत है।

वो जैसे ही उन्हें तंबू के अंदर ले गए तो वहां से रक्त की धार बह निकली। जिसे देखकर बाकी लोगों का मन बैचेन हो उठा।

अंत में जब गुरु गोबिंद सिंह अकेले तंबू में गए और वापस लौटे तो लोग हैरान रह गए। पांचों युवक उनके साथ थे। नए कपड़े, पगड़ी पहने हुए। गुरु गोबिंद सिंह उनकी परीक्षा ले रहे थे।

गुरु गोबिंद ने 5 युवकों को अपना पंच प्यारा बताया और ऐलान किया कि अब से हर सिख कड़ा, कृपाण, कच्छा, केश और कंघा धारण करेगा। यहीं से खालसा पंथ की स्थापना हुई। खालसा का अर्थ- शुद्ध होता है।

कई कलाओं और भाषाओं में निपुण थे गुरु गोबिंद सिंह

गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था। गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी। साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी।

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