प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
सनातन धर्म में प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को एकादशी व्रत रखा जाता है।
यह दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णुजी की पूजा-आराधना के लिए समर्पित माना जाता है। पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विष्णुजी की पूजा करने से संतान सुख, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
साधक के सभी दुख-संकट दूर होते हैं और अमोघ फलों की प्राप्ति होती है।
दृक पंचांग के अनुसार, पौष माह की पुत्रदा एकादशी 10 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं पौष पुत्रदा एकादशी की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजाविधि, भोग, मंत्र और पारण टाइमिंग
कब है पौष पुत्रदा एकादशी?
दृक पंचांग के अनुसार, पौष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 9 जनवरी 2025 को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर आरंभ होगा और अगले दिन 10 जनवरी 2025 को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगा।
ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, 10 जनवरी 2025 को पौष पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाएगा।
शुभ मुहूर्त :एकादशी व्रत के दिन शुभ योग व शुक्ल योग का शुभ संयोग बन रहा है। धार्मिक कार्यों के लिए यह योग शुभ माना जाता है।
ब्रह्म मुहूर्त : 05:27 ए एम से 06:21 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त : 12:08 पी एम से 12:50 पी एम तक
विजय मुहूर्त : 02:13 पी एम से 02:55 पी एम तक
अमृत काल : 11:29 ए एम से 01:00 पी एम तक
निशिता मुहूर्त : 12:02 ए एम, जनवरी 11 से 12:56 ए एम, जनवरी 11
अशुभ मुहूर्त : पुत्रदा एकादशी के दिन 10 जनवरी 2025 को भद्राकाल भी रहेगा। हिंदू धर्म में भद्राकाल और राहुकाल को धर्म-कर्म के कार्यों के लिए अशुभ समय माना गया है। इस दौरान किसी भी धार्मिक और मांगलिक कार्यों की शुरुआत न करने की सलाह दी जाती है।
राहुकाल : 11:10 ए एम से 12:29 पी एम तक
भद्राकाल: 07:15 ए एम से 10:19 ए एम तक
पारण टाइमिंग :एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में किया जाता है। इसलिए 11 जनवरी 2025 को सुबह 07:15 ए एम से 08:21 ए एम तक एकादशी व्रत का पारण किया जा सकता है।
पूजाविधि :
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें। स्नानादि के बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें। विष्णुजी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर की साफ-सफाई करें। एक छोटी चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर विष्णुजी की प्रतिमा स्थापित करें। अब विष्णुजी को फल, फूल, धूप,दीप, अक्षत और तुलसी दल अर्पित करें। इसके बाद उन्हें पंचामृत का भोग लगाएं। पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का पाठ करें। विष्णुजी के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। दिनभर व्रत रखें और विष्णुजी का स्मरण करें। अगले दिन द्वादशी तिथि में स्नानादि के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें। ब्राह्मणों को भोजन खिलाएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद स्वंय भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
प्रियंका प्रसाद (केवल व्हाट्सएप) 94064 20131