एचआईवी जैसै खतरनाक संक्रमण बीमारी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा लेनाकापाविर का एक नया इंजेक्शन वैरिएंट 2025 के अंत तक या 2026 की शुरुआत में मार्केट में लाने की योजना है।
निर्माता कंपनी गिलियड साइंसेस के अधिकारियों का कहना है कि इस दवा को सबसे पहले दुनिया के सबसे गरीब देशों में उपयोग के लिए लाया जाएगा।
नया फॉर्मूलेशन एक साल की सक्रिय क्षमता के साथ आता है और एचआईवी के खिलाफ सुरक्षा में एक निवारक भूमिका निभा सकता है।
दवा ‘लेनाकापाविर’ (Lenacapavir) को पहले ही संयुक्त राज्य अमेरिका में उपयोग के लिए मंजूरी मिल चुकी है। इसकी चिकित्सा के पहले वर्ष की लागत लगभग 42,250 डॉलर है।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष नैदानिक परीक्षणों में दवा संक्रमण को रोकने में काफी कारगर भी रही है।
गिलियड साइंसेज अब संयुक्त राज्य अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अपने इंजेक्शन वैरिएंट को मार्केट में उतारने की परमिशन मांग रहा है।
चुनौतियां क्या हैं?
एड्स, टीबी और मलेरिया जैसे संक्रमण बीमारी के लिए दवाई बनाने वाली कंपनी गिलियाड साइंसेस प्रमुख हुई यांग ने रॉयटर्स को बताया कि वैश्विक स्तर पर इसकी शुरुआत एफडीए और डब्ल्यूएचओ से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने पर निर्भर है।
यांग ने कहा, “हम नहीं चाहते कि गरीब देश इस दवा का इंतजार करें और जब हमें इस दवा के नए संस्करण को यूज करने की परमिशन मिले तो ये देश कतार में पीछे रह जाएं।
क्या सस्ती होगी यह दवा?
ग्लोबल फंड ने मंगलवार को कहा कि वह एड्स राहत के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की आपातकालीन योजना (पीईपीएफएआर) के साथ साझेदारी करेगा, ताकि उन देशों में महंगी लेनाकापाविर दवा को सस्ती दर में पहुंचाया जा सके।
फंड ने प्रस्तावित साझेदारी के बारे में और अधिक जानकारी नहीं दी, लेकिन इतना जरूर कहा कि लक्ष्य अगले तीन वर्षों में कम से कम दो मिलियन लोगों तक इस दवा को पहुंचाना है।
गौरतलब है कि दवा निर्माता कंपनी गिलियड ने इस साल अक्टूबर में छह जेनेरिक दवा निर्माताओं के साथ 120 कम आय वाले देशों में लेनाकापाविर के सस्ते संस्करण बनाने और बेचने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
इन देशों में अफ्रीकी और कैरेबियाई देशों को तो जरूर शामिल किया गया, लेकिन लैटिन अमेरिका के देशों को नहीं।