वैज्ञानिक ‘कृत्रिम सूर्यग्रहण’ क्यों कर रहे हैं? रोशनी रोकने की तैयारी, भारत ने भी दिया अपना योगदान…

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने पहली बार सूर्य ग्रहण की कृत्रिम परिस्थितियां उत्पन्न करने के उद्देश्य से दो सैटेलाइट को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा है।

इस ऐतिहासिक मिशन का नाम Proba-3 (प्रोजेक्ट फॉर ऑन-बोर्ड ऑटोनॉमी) है। यह 5 दिसंबर को भारत के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C59 रॉकेट की मदद से लॉन्च किया गया था।

इस मिशन का मुख्य उद्देश्य “सटीक संरचनात्मक उड़ान” (Precise Formation Flying – PFF) तकनीक का प्रदर्शन करना और सूर्य के बाहरी वायुमंडल, जिसे कोरोना कहा जाता है, उसका अध्ययन करना है।

कोरोना अध्ययन: क्यों है यह महत्वपूर्ण?

सूर्य की सतह का औसत तापमान लगभग 5,500 डिग्री सेल्सियस होता है, लेकिन इसके विपरीत, कोरोना का तापमान 10 लाख से 30 लाख डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।

यह विरोधाभास वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य बना हुआ है। Proba-3 के जरिए वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करेंगे कि कोरोना इतना गर्म क्यों है और इस क्षेत्र में कौन से वैज्ञानिक घटनाक्रम घटित होते हैं।

कोरोना से निकलने वाली सौर लपटें पृथ्वी तक पहुंच सकती हैं और अंतरिक्ष मौसम पर प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे सैटेलाइट और पृथ्वी पर संचालित विद्युत प्रणालियों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

मिशन का संचालन

Proba-3 मिशन में दो सैटेलाइट शामिल हैं:

  • कोरोनोग्राफ स्पेसक्राफ्ट (CSC)
  • ऑकल्टर स्पेसक्राफ्ट (OSC)

ऑकल्टर में 140 सेमी व्यास की एक डिस्क है, जो CSC पर नियंत्रित छाया डालकर सूर्य के चमकीले भाग को ब्लॉक करेगी।

दोनों सैटेलाइट को पृथ्वी से 60,000 किलोमीटर ऊपर स्थापित किया गया है और वे 150 मीटर की सटीक दूरी बनाए रखते हुए सूर्य के साथ संरेखित होंगे।

यह तकनीक इतनी सटीक है कि इसे मिलीमीटर-स्तर की गणना की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया के दौरान वैज्ञानिक छह घंटे तक सूर्य के कोरोना का अध्ययन कर पाएंगे, जो अब तक केवल प्राकृतिक सूर्य ग्रहण के दौरान ही संभव था।

उपकरण और तकनीक

Proba-3 पर लगे उपकरणों में ASPICCS नामक कोरोनोग्राफ शामिल है। यह विशेष उपकरण सूर्य की तीव्र रोशनी को ब्लॉक करता है ताकि कमजोर कोरोना को स्पष्ट रूप से देखा जा सके।

सामान्य परिस्थितियों में, कोरोना की चमक सूर्य की सतह से दस लाख गुना कम होती है और इसे नग्न आंखों से देख पाना असंभव है।

भविष्य की संभावनाएं

ESA का कहना है कि यह मिशन अंतरिक्ष मौसम की भविष्यवाणी और भूचुंबकीय तूफानों के प्रभाव को समझने में मदद करेगा।

यदि यह तकनीक सफल होती है, तो वैज्ञानिक हर 19 घंटे के कक्षीय चक्र में छह घंटे तक कोरोना का अध्ययन कर सकेंगे, जिससे प्राकृतिक सूर्य ग्रहण की प्रतीक्षा की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।

यह मिशन अंतरिक्ष अनुसंधान में एक बड़ा कदम है और इससे भविष्य में वैज्ञानिक समुदाय को अभूतपूर्व जानकारियां प्राप्त होने की संभावना है।

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