गाइडेड मिसाइल से लैस INS तुशिल क्या है? भारत-रूस की साझेदारी से चीन क्यों पड़ा भारी?…

भारतीय नौ सेना के लिए रूस में बनाए गए युद्धपोत INS तुशिल का सोमवार को रूस के तटीय शहर कलिनिनग्राद में जलावतरण किया गया।

रडार से बचने में सक्षम और गाइडेड मिसाइल क्षमता से लैस इस युद्धपोत के जलावतरण से पड़ोसी देश चीन के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं क्योंकि इससे हिन्द महासागर में भारत की नौसैनिक क्षमता काफी मजबूत हो गई है।

INS तुशिल के जलावतरण समारोह में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नौ सेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी और कई अन्य वरिष्ठ भारतीय अधिकारी मौजूद थे।

आईएनएस तुशिल से हिंद महासागर में भारतीय नौ सेना की सैन्य ऑपरेशन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में चीन की नौ सेना की गतिविधियां बढ़ी हैं।

यही वजह है कि गाइडेड मिसाइल से लैस INS तुशिल के जलावतरण से चीन परेशान है। दूसरी बड़ी बात यह है कि इस युद्धपोत का निर्माण 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के समझौते के तहत रूस में किया गया है।

रूस-भारत की यारी-दोस्ती दशकों पुरानी है। चीन हाल के वर्षों में रूस को खुश करने के लिए कई कदम उठाता रहा है। बावजूद रूस ने INS तुशिल का जलावतरण कराकर भारत संग दोस्ती की मिसाल पेश की है।

बता दें कि भारत ने नौ सेना के लिए चार ‘स्टील्थ फ्रिगेट’ को लेकर 2016 में रूस के साथ यह समझौता किया था। इस समझौते के तहत, दो युद्धपोतों का निर्माण रूस में किया जाना था, जबकि अन्य दो का निर्माण भारत में किया जाना था।

समारोह में अपने संबोधन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने युद्धपोत के जलावतरण को भारत की बढ़ती समुद्री ताकत का गौरवपूर्ण प्रमाण तथा रूस के साथ दीर्घकालिक संबंधों में महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह जहाज रूसी और भारतीय उद्योगों की सहयोगात्मक क्षमता का एक बड़ा प्रमाण है। यह संयुक्त कौशल के माध्यम से तकनीकी उत्कृष्टता की ओर भारत की यात्रा का उदाहरण है।’’

सिंह ने कहा कि भारत और रूस कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष अन्वेषण और आतंकवाद-रोधी जैसे क्षेत्रों में एक-दूसरे की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर सहयोग के ‘‘नए युग’’ में प्रवेश करेंगे। जहाज के निर्माण पर कलिनिनग्राद में तैनात ‘युद्धपोत निगरानी दल’ के विशेषज्ञों की एक भारतीय टीम ने बारीकी से नज़र रखी।

INS तुशिल की क्या खूबियां

अधिकारियों ने बताया कि 125 मीटर लंबा, 3900 टन वजन वाला यह युद्धपोत रूसी और भारतीय अत्याधुनिक तकनीकों और युद्धपोत निर्माण में सर्वोत्तम विधियों का एक प्रभावशाली मिश्रण है।

जहाज का नया डिजाइन इसे रडार से बचने की सुविधा और बेहतर स्थिरता प्रदान करता है। भारतीय नौसैनिक विशेषज्ञों और सेवरनॉय डिज़ाइन ब्यूरो के सहयोग से, जहाज की स्वदेशी सामग्री को 26 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है और भारत में निर्मित प्रणालियों की संख्या दोगुनी से भी अधिक बढ़कर 33 हो गई है।

इस जहाज के निर्माण में प्रमुख भारतीय कंपनियां ओईएम ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, केलट्रॉन, टाटा से नोवा इंटीग्रेटेड सिस्टम, एल्कोम मरीन, जॉनसन कंट्रोल्स इंडिया और कई अन्य शामिल थीं। आईएनएस तुशिल परियोजना 1135.6 का एक उन्नत क्रिवाक तीन श्रेणी का युद्धपोत है।

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