प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी यानी आंवला नवमी (10 नवंबर) से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा-अर्चना और दान का अक्षय फल मिलता है, इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है।
आंवला नवमी के दिन ही कृष्ण ने कंस के आमंत्रण पर वृंदावन छोड़कर मथुरा की ओर प्रस्थान किया था।
‘पद्म’ और ‘स्कंद’ पुराण में वर्णन है कि आंवले की उत्पत्ति ब्रह्माजी के आंसुओं से हुई थी।
जबकि एक अन्य कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत कलश से पृथ्वी पर अमृत की बूंदें गिरने से आंवले की उत्पत्ति हुई। और शिव के विषपान करते हुए जो बूंदें पृथ्वी पर गिरीं, उससे भांग-धतूरे की उत्पत्ति हुई।
एक कथा है कि एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर रही थीं। उनकी इच्छा हुई कि कैसे भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा की जाए।
तभी उन्हें ध्यान आया कि विष्णु को तुलसी प्रिय है और शिव को बेल। इन दोनों के गुण एक साथ आंवले में हैं। लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की।
उनकी पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे उन्हें भोजन कराया और उसके बाद स्वयं भोजन को प्रसाद रूप में ग्रहण किया।
उस दिन से ही यह तिथि आंवला नवमी के नाम से प्रसिद्ध हुई। ऐसी मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा, आंवले से स्नान, आंवले को खाने और आंवले का दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है।
एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन आदि शंकराचार्य को एक निर्धन स्त्री ने भिक्षा में सूखा आंवला दिया था। उस निर्धन स्त्री की गरीबी से द्रवित होकर शंकराचार्य ने मां लक्ष्मी की मंत्रों द्वारा स्तुति की, जो ‘कनकधारा’ स्त्रोत के रूप में जानी जाती है।
उस निर्धन स्त्री के भाग्य में धन न होते हुए भी शंकराचार्य की विनती पर मां लक्ष्मी ने उसके घर स्वर्ण आंवलों की वर्षा करके उसकी दरिद्रता दूर की। इसी दिन भगवान विष्णु ने कूष्मांडा राक्षस का वध किया था।
प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार) : whatsaap मेसेज पर संपर्क करें 94064 20131