प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
इस साल दो दिन दिवाली मनाई जा रही है।
शास्त्रों की मानें तो अमावस्या तिथि में प्रदोष काल में दिवाली पूजन उत्तम माना गया है। पंचांग भेद के कारण इस साल 31 अक्टूबर व 1 नवंबर को दिवाली मनाई जा रही है।
आज दिवाली के दिन सायंकाल प्रदोष काल शुरू होने के बाद महालक्ष्मी-श्रीगणेश की पूजा होगी। दिवाली पूजन शुभ मुहूर्त देखकर करना फलदायक माना गया है।
इसलिए आइए जानते हैं आज दिवाली के दिन के सभी शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, सामग्री, आरती व मंत्र-
दिवाली आज और कल:अमावस्या तिथि की शुरुआत पंचांग अनुसार 31 अक्टूबर को दिन के 03:22 के बाद होगी। इसका समापन अगले दिन यानि 01 नवम्बर को संध्या 05:23 पर होगा।
इस तरह अमावस्या तिथि प्रदोषकाल 31 अक्टूबर को बन रही है और इसी रात्रि में अमावस्या तिथि का निशित काल हो रही है।
दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा कैसे करें?
दिवाली के दिन घर के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं।
इस स्थान को गंगाजल से पवित्र कर लें। इस चौकी पर अब गणेश जी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। पहले गणेश जी की पूजा करें।
फिर माता का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें। माता को लाल चुनरी व शृंगार का समान चढ़ाएं।
इसके साथ ही फूल माला, धूप, दीप, इलायची, नैवेद्य, सुपारी और भोग आदि अर्पित करें। मां लक्ष्मी की पूजा करते हुए ध्यान करते हुए लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। शाम को भगवान गणेश के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करें।
तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक भी जलाएं। गाय के दूध की खीर बनाकर भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में पूरे परिवार को खिलाएं। पूजा के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर करें।
लक्ष्मी जी का मंत्र:ऊँ श्रीं क्लीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
भोग:खीर, लड्डू, मोदक, मेवे, पंचामृत
शुभ रंग:पीला, गुलाबी, लाल
सुबह से लेकर शाम तक इन शुभ मुहूर्त में करें आज दिवाली पूजा
शुभ -सुबह 06:32 से 07:55 तक
चर -सुबह 10:41 से 12:04
लाभ -दिन 12:04 से 13:27
अमृत -दिन 01:27 से 02:50
शुभ- शाम 04:13 से 05:36
अमृत -शाम 05:36 से 07:14
चर -शाम 07:14 से 08:51
लाभ -रात 00:05 से 01:42, नवम्बर 01
दिवाली पूजा सामग्री:गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, एक लकड़ी की चौकी, चंदन, एक लाल कपड़ा, पंचामृत, कुमकुम, पान, हल्दी की गांठ, फूल (कमल, गुलाब व पीले फूल), रोली, सुपारी, लौंग, धूपबत्ती, भगवान के लिए वस्त्र, भोग के लिए मिठाई या लड्डू, माचिस, दीपक, घी, गंगाजल, फल, पान का पत्ता, कपूर, दूर्वा, अक्षत, शृंगार का समान, जनेऊ, लैया, खील, बताशे, गेहूं, चांदी के सिक्के, आम के पत्ते, आरती व चालीसा की किताब, कलावा, नारियल और कलश आदि होना चाहिए।
लक्ष्मी जी की आरती
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
दोहा – महालक्ष्मी नमस्तुभ्यम्, नमस्तुभ्यम् सुरेश्वरि। हरिप्रिये नमस्तुभ्यम्, नमस्तुभ्यम् दयानिधे।।
पद्मालये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं च सर्वदे। सर्व भूत हितार्थाय, वसु सृष्टिं सदा कुरुं।।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।