ईरान ने इजरायल पर 1 अक्टूबर को मिसाइलों से हमला बोला था।
ये हमले इजरायल की राजधानी तक को निशाना बनाते हुए किए गए थे। इसके जवाब में इजरायल ने शनिवार को ईरान में स्ट्राइक कीं।
ये हमले तेहरान तक में किए गए और ईरान के सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुंचाया गया।
इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ईरान को बड़ा नुकसान होने की बात कही है। फिर भी इजरायल ने इस बात की सावधानी बरती की ईरान के पावर ग्रिड, परमाणु हथियारों के केंद्र और नागरिक संस्थानों को टारगेट न किया जाए।
रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि इजरायल ने हमले का यह तरीका इसलिए चुना है ताकि जंग को बड़े पैमाने पर न फैलने दिया जाए और ईरान को संदेश भी पहुंच जाए।
इजरायल के इस तरह के हमले को प्रिवेंटिव वॉर (Preventive War) कहा जा रहा है। यह युद्ध की उस रणनीति को कहते हैं, जब हमलावर देश सोच-समझकर दुश्मन पर वार करे और यह सावधानी भी बरते कि जंग ज्यादा भीषण न हो।
ऐसी स्थिति में अकसर हमलावर देश महज इसलिए अटैक करता है ताकि सामने वाले को अपनी शक्ति का अहसास कराया जाए। प्रिवेंटिव वॉर अकसर तब होती है, जब पहले किसी ने हमला कर दिया हो और उसे जवाब देना होगा।
प्रिवेंटिव वॉर के तहत अकसर पहला हमला झेल चुके देश जवाब तो देते हैं, लेकिन उसकी तीव्रता इतनी अधिक नहीं रहती कि जंग बहुत विस्तार ले। अकसर इसका मकसद यह संदेश देना होता है कि हमें कम मत आंकना।
प्रिवेंटिव वॉर्स शीर्षक से लिखे गए एक शोध पत्र में लॉस एबिंक और लु डॉन्ग लिखते हैं, ‘एक नई शक्ति का उभार या नई चुनौती आने पर अकसर ताकतवर देश प्रिवेंटिव वॉर की स्थिति में होता है।
ऐसी स्थिति दोतरफा बारगेनिंग गेम जैसी होती है। अकसर नई उभरती शक्ति की स्थिति में ऐसा होता है, जब उससे मुकाबले के लिए पुरानी ताकतें शक्ति प्रदर्शन करती हैं।’
कुछ ऐसा ही इजरायल ने भी करने की कोशिश की है। डिफेंस एक्सपर्ट्स मानते हैं कि बेंजामिन नेतन्याहू ने घरेलू दबाव में इस स्तर का हमला किया है ताकि संदेश जाए कि ईरान को करारा जवाब दिया है और युद्ध भी ज्यादा न बढ़े।
क्या इजरायल ने मान ली अमेरिका की बात, क्या होगा फायदा
यही नहीं इजरायल की ओर से सीमित अटैक ईरान के लिए भी फायदेमंद रहा है। ईरान के सामने अब इजरायल के हमले का जवाब देने की चुनौती नहीं होगी।
ईरान सरकार के आगे घरेलू स्तर पर यह दबाव नहीं होगा कि वह इजरायल के हमले का हर हाल में जवाब दे। इस तरह एक सीमित युद्ध की स्थिति बनाई गई है। कहा जा रहा है कि अमेरिका की भी यही नसीहत इजरायल को थी और उसने उसका ही पालन किया है।
अमेरिका का कहना रहा है कि इजरायल इस जंग को ज्यादा विस्तार न दे। वह हिजबुल्ला और हमास पर भले ही हमले करता रहे, लेकिन सीधे तौर पर किसी देश से जंग में न उतरे।