विदेश सचिव विक्रम मिस्री के नेतृत्व में विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को एक संसदीय समिति को बताया कि लगभग 30,000 भारतीय नागरिकों के अभी इजरायल में होने का अनुमान है।
सूत्रों ने यह जानकारी दी। सूत्रों के अनुसार विदेश मामले से संबंधित स्थायी समिति को बताया गया कि पश्चिम एशिया में संघर्ष शुरू होने से पहले दोनों देशों के बीच हुए एक समझौते के तहत निर्माण क्षेत्र के लगभग 9,000 श्रमिक और 700 कृषि श्रमिक वहां गए हैं।
मंत्रालय ने वहां रहने वाले भारतीय नागरिकों की मदद करने के अपने प्रयासों पर प्रकाश डाला।
मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त किए गए इस रुख को दोहराया कि भारत चाहता है कि संकट को बातचीत के माध्यम से हल किया जाए।
सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस सदस्य शशि थरूर की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति की बैठक में कुछ सदस्यों ने लद्दाख क्षेत्र में सीमा संकट के समाधान के लिए भारत और चीन के बीच हाल में हुए समझौते और भारत-कनाडा संबंधों में कड़वाहट के विषय भी उठाए। अधिकारियों ने बैठक में दो मुद्दों पर संक्षिप्त टिप्पणियां कीं।
थरूर ने बाद में कहा कि यह ”बहुत अच्छी चर्चा” थी। सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय ने कहा कि भारत-चीन समझौता 2020 में सीमा संकट से पहले की स्थिति को बहाल करेगा।
उन्होंने बताया कि एक विपक्षी सांसद ने पूछा कि क्या भारत ने इस संघर्ष में इज़रायल के प्रति झुकाव दिखाया है।
प्रतिनिधिमंडल ने संसदीय समिति के समक्ष अपनी प्रस्तुति में फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद के लिए फलस्तीनी अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी को भारत की मानवीय सहायता का विवरण दिया।
मिस्री ने इज़रायल के साथ-साथ फलस्तीन के साथ भारत के संबंधों की बात की। प्रतिनिधिमंडल ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने हमास द्वारा 7 अक्टूबर, 2023 को इजरायली नागरिकों को निशाना बनाने की निंदा की और फलस्तीन के एक अस्पताल में नागरिकों के हताहत होने पर भी चिंता व्यक्त की।
मंत्रालय के प्रतिनिधिमंडल द्वारा समिति को बताया गया कि युद्ध के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन अजय’ के तहत 1,300 से अधिक भारतीय नागरिकों और कुछ नेपाली नागरिकों को इजराइल से बाहर निकाला।