प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
सनातनी शास्त्रत्त् में वर्णित तीसरी महानिशा कालरात्रि (दीपावली) पर तंत्र साधकों को इस वर्ष 26 घंटे 24 मिनट का समय साधना के लिए मिलेंगे।
कालरात्रि में सिद्धि का सर्वाधिक असर होता है।
इस महानिशा में प्राप्त सिद्धियों का उपयोग जनकल्याण के लिए किया जाता है। 31 अक्तूबर को अमावस्या दोपहर बाद आरंभ होगी।
भृगु संहिता विशेषज्ञ पं. वेदमूर्ति शास्त्र के अनुसार दीपावली सनातनी परंपरा में रात में मनाए जाने वाले प्रमुख पर्वों में एक है। इसे तीसरी महानिशा का स्थान प्राप्त है।
पहली महानिशा महाशिवरात्रि एवं दूसरी मोहरात्रि (जन्माष्टमी) है। इस बार तंत्र साधकों के लिए दीपावली के दिन सूर्यास्त से मध्यरात्रि तक का समय विशेष प्रभावी है।
मोहरात्रि, शिवरात्रि, होलिका दहन, शरद पूर्णिमा की भांति दीपावली के अवसर पर भी भी संपूर्ण रात्रि जागरण का विधान है।
नहीं मिलेगा अभिजीत मुहूर्त
इस बार दीपावली में खास यह कि 31 अक्तूबर को दोपहर बाद 0352 बजे अमावस्या लगने से लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए अभिजीत मुहूर्त नहीं मिलेगा।
अभिजीत मुहूर्त का काल दिन में 1153 से 1234 बजे तक होता है। 31 अक्तूबर को इस कालखण्ड में चतुर्दशी तिथि रहेगी।
दीपावली पर ऐसा जरूर करें
दीपावली की संध्या सबसे पहले घर में दीपक जलाएं। इसके बाद एक दीप लेकर घर के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर आकाश की ओर दिखाएं।
मान्यता है कि आश्विन मास से धरती पर आने वाले पितरों को दीपक द्वारा धरती से प्रस्थान का मार्ग दिखाना चाहिए। इससे पितृ प्रसन्न होकर अपने-अपने लोक लौट जाते हैं। इसके बाद ही घर से बाहर या देवालयों में दीप जलाएं।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।