मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को न्यायपालिका की पवित्रता और गरिमा को बनाए रखने के लिए सख्त निर्देश दिए।
उन्होंने कहा कि अदालतों में महिलाओं के प्रति किसी भी प्रकार की अपमानजनक भाषा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
सीजेआई ने यह टिप्पणी कई महिला न्यायिक अधिकारियों द्वारा दर्ज की गई शिकायतों के संदर्भ में की, जिनमें प्रशासनिक प्रतिष्ठान के कुछ सदस्यों द्वारा ऐसी भाषा का इस्तेमाल किए जाने की शिकायत की गई थी।
उन्होंने न्याय तक लोकतांत्रिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बाधाओं को खत्म करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
‘न्याय की देवी’ की मूर्ति में बदलाव का उल्लेख करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि कानून अंधा नहीं है और यह सभी को समान दृष्टि से देखता है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटा दी गई है, जिसका अर्थ निष्पक्षता है।
उन्होंने कहा, ‘‘आखिरकार, कानून अंधा नहीं है। यह सभी को समान रूप से देखता है और सामाजिक वास्तविकताओं के प्रति समान रूप से जागरूक है।’’
इसके अलावा, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उत्तरी गोवा जिला न्यायालय परिसर के उद्घाटन समारोह के दौरान कहा, “जैसा कि हम अपने न्यायालयों में समावेशिता की ओर प्रयास कर रहे हैं, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपनी भाषा का चयन सतर्कता से करें, जो न केवल सटीक हो बल्कि सम्मानजनक और समावेशी भी हो।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अदालतों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा लिंग, जाति या सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आधारित पूर्वाग्रहों को नहीं बढ़ावा देनी चाहिए। उन्होंने कहा, “अक्सर, मैं सुनता हूं कि महिला न्यायिक अधिकारी शिकायत करती हैं कि कुछ प्रशासनिक सदस्य महिलाओं के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं।”
सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिंग जागरूकता बढ़ाने और पूर्वाग्रहों को समाप्त करने के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख किया और बताया कि शीर्ष अदालत ने अदालतों में चर्चा के लिए एक ‘जेंडर हैंडबुक’ तैयार करने का प्रयास किया है।
उन्होंने कहा कि न्यायिक अधिकारियों पर यह जिम्मेदारी है कि वे कानूनी चर्चा को उन्नत करें और यह सुनिश्चित करें कि न्यायिक निर्णय और आदेश सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध हों।