प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा और कोजागर पूर्णिमा समेत कई नामों से जाना जाता है।
हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव पृथ्वी के निकट आते हैं और मां लक्ष्मी भी धरती पर विचरण करती है।
इसलिए इस विशेष दिन मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। मान्यता है कि इससे धन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन प्रभु श्रीकृष्ण ने यमुना के तट पर गोपियों के साथ महारास किया था। इसलिए इसे रास पूर्णिमा कहा जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि शरद पूर्णिमा का भगवान कृष्ण से क्या कनेक्शन है और महारास का रहस्य…
शरद पूर्णिमा का भगवान कृष्ण से कनेक्शन :
शरद पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन लक्ष्मी मां की पूजा-अर्चना की जाती हैं।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा के 16 कलाओं से पूर्ण होने के कारण चंद्रमा में विशेष ऊर्जा होती है। इसलिए इस दिन चांद की रोशनी में खीर बनाकर रखा जाता है और अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
मान्यता है कि कि शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी। यह लीला आध्यात्मिक प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाती है।
कहा जाता है कि जब गोपियां श्रीकृष्ण से मिलने के लिए यमुना तट पर आईं, तब उन्होंने सांसारिक इच्छाओं को त्यागकर स्वंय को श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया। रासलीला केवल भौतिक प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं है,बल्कि यह आध्यात्मिक प्रेम और आत्मा का परमात्मा से मिलन है।
गोपियों को आत्मा का प्रतीक और श्रीकृष्ण को परमात्मा का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि जब आत्मा सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा से मिलन होता है, तो वास्तविक शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन रात को चंद्रमा की रोशनी में बाहर बैठना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।