शरद पूर्णिमा पर चंद्रदेव 16 कलाओं से पूर्ण होते हैं, जानें इनका महत्व…

प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है।

इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ पूर्ण रहता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करने आती हैं।

शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।

धार्मिक मान्यता है कि कोजागर पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा-अर्चना करने से सुख-समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

हर साल अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाया जाता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है। 

आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा के दिन 16 कलाएं और उनका महत्व…

चंद्रमा की 16 कलाएं

भू- पृथ्वी के बड़े क्षेत्र का सुख प्राप्त करने वाला

कीर्ति : चारों दिशाओं में यश-कीर्ति प्राप्त करने वाला

इला : अपनी वाणी से सबको मोहित करने वाला

लीला : मोहक लीलाओं से सबको वश में करने वाला

श्री : इस कला से पूर्ण व्यक्ति भौतिक और आत्मिक रूप से धनी होता है।

अनुग्रह : निस्वार्थ भाव से उपकार करने वाला

इशना : ईश्वर के समान शक्तिशाली

सत्य : धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करने वाला

ज्ञान : नीर,क्षीर और विवेक की कला से संपन्न

योग : अपने मन और आत्मा को एकाकार करने वाला

प्रहवि : विनयशीलता से युक्त

क्रिया : अपने इच्छा मात्र से सभी कार्यों को सिद्ध करने वाला

कांति : चंद्रमा की आभा और सौंदर्य की कला से युक्त

विद्या : सभी वेद-विद्याओं में पारंगत

विमला : छल-कपट रहित

उत्कर्षिणी : युद्ध और शांति दोनों ही काल में प्रेरक व्यक्तित्व

चंद्रमा की 16 कलाओं का महत्व :

मान्यता है कि चंद्रमा की सोलह कलाएं हमारे जीवन के कई पहलुओं पर गहरा प्रभाव डालती हैं। यह कलाएं मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति से जुड़ी हुई होती है। जीवन में सुख-समृद्धि के लिए इन कलाओं को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

किसी भी व्यक्ति में विशेष प्रकार के गुणों को कला कहते हैं। संपूर्ण कलाएं 64 मानी गई हैं। भगवान कृष्ण को 16 कलाओं से पूर्ण माना गया है।

वहीं, प्रभु श्रीराम को 12 कलाओं का स्वामी माना गया है। मान्यता है कि जब चंद्रमा की सोलह कलाएं होती हैं, तो वह उसके पूर्ण रूप को दर्शाती है।चंद्रेदव केलव शरद पूर्णिमा के दिन ही सोलह कलाओं से पूर्ण होते हैं।

इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होते हैं और उसकी किरणों से अमृत वर्षा होती है। इसलिए शरद पूर्णिमा का रात्रि को खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में बाहर रखते हैं।

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