दिग्गज कारोबारी रतन टाटा के निधन के बाद उनकी कंपनी में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर रहीं नीरा राडिया ने पहली बार बताया कि कि रतन टाटा नैनो क्यों लॉन्च करना चाहते थे।
उन्होंने बताया कि नैनो को लॉन्च करना उनका सपना था और उन्होंने पूरा भी किया, लेकिन वो इस सपने को जितनी ऊंचाई पर पर देखना चाहते थे, वो हो नहीं पाया। वो चाहते थे कम कमाने वालों का भी कार का सपने पूरा हो।
रतन टाटा का बीते 9 अक्टूबर को निधन हो गया था। उन्होंने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। उम्र संबंधी दिक्कतों और हाई ब्लड प्रेशर के चलते वो 7 अक्टूबर को अस्पताल में भर्ती हुए थे।
नीरा राडिया ने 2000 से 2012 के बीच टाटा समूह के लिए जनसंपर्क का काम संभाला था। उन्होंने कहा कि उद्योगपति और परोपकारी व्यक्तित्व के धनी रतन टाटा आम आदमी के लिए कुछ करना चाहते थे।
इसलिए उन्होंने नैनो कार का सपना देखा। बंद हो चुकी कंपनी वैष्णवी कॉरपोरेट कम्यूनिकेशंस की पूर्व अध्यक्ष नीरा राडिया ने एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में कहा कि वे अपने देश और लोगों से बहुत प्यार करते थे।
वे कहते थे कि वैश्वीकरण बहुत महत्वपूर्ण है। रतन टाटा कहा कहा करते थे, “मुझे वैश्विक होने की केवल एक ही वजह लगती है, वह है भारत में प्रौद्योगिकी लाना।”
नैनो कार का सपना
उन्होंने बताया कि रतन टाटा ने नैनो बनाने का फैसला क्यों किया? इस बात को पिछले कई वर्षों में कई बार दोहराया जा चुका है।
उन्होंने कहा, “वे आम आदमी के लिए कुछ चाहते थे। उदाहरण के लिए, वे चाहते थे कि बाइक पर सवार कोई बारिश में न भीगे। किसी व्यक्ति का पैसों की तंगी के चलते कार का सपना सिर्फ सपना नहीं रहना चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि रतन टाटा ने नैनो के निर्माण के लिए पहले पश्चिम बंगाल के सिंगूर को क्यों चुना? राडिया ने कहा कि वो बंगाल में नौकरियां पैदा करना चाहते और औद्योगिकीकरण चाहते थे।
जब उन्होंने नैनो के प्लांट के लिए सिंगूर की घोषणा की तो हमें आश्चर्य जरूर हुआ, क्योंकि हमें पहले इसके बारे में नहीं बताया गया।
वह विकास के पक्षधर थे और राजनीति नहीं चाहते थे। हालांकि जब बंगाल में नैनो प्लांट को लेकर विवाद छिड़ा, तब टाटा समूह सौदे पर बातचीत कर रही थी। सिंगुर में जमीनी स्तर पर समस्या थी, लेकिन सिंगूर की समस्या नैनो या रतन टाटा से संबंधित नहीं थी।
राडिया ने कहा, “सिंगूर तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी के एक नेता का निर्वाचन क्षेत्र था और यह एक राजनीतिक लड़ाई थी। हमने जगह की तलाश में कई अन्य राज्यों का दौरा किया।
पंजाब, कर्नाटक और कई अन्य राज्यों से बुलावा भी आया, लेकिन हम गुजरात गए, क्योंकि वह थोड़ा अधिक औद्योगिक था और विकास की ओर अग्रसर था। इसलिए वहां प्लांट लगाना आसान था।”