इजरायल में शुक्रवार से यहूदी धर्म का सबसे पवित्र त्योहार योम किप्पुर (Yom Kippur) मनाया जा रहा है।
लेकिन ये त्योहार डर के साए में मनाया जा रहा है और कई जगह खतरे का अलर्ट जारी है। योम किप्पुर यहूदी कैलेंडर का सबसे पवित्र दिन है जिसे प्रायश्चित और आत्म-निरीक्षण के लिए जाना जाता है।
लेकिन इस बार, 1973 के बाद पहली बार, देश एक सक्रिय युद्ध के बीच में योम किप्पुर मना रहा है। इस साल इजरायल को लेबनान और गाजा में जारी सैन्य संघर्ष और ईरान के साथ बढ़ते तनाव के चलते हाई सिक्योरिटी अलर्ट पर रखा गया है।
रॉकेट हमले और सुरक्षा तैयारियां
योम किप्पुर की शुरुआत से पहले ही, इजरायल पर 120 से अधिक रॉकेट दागे गए, जिनमें से अधिकांश को इजरायल के आयरन डोम सिस्टम ने इंटरसेप्ट कर लिया। कुछ रॉकेट खुले क्षेत्रों में गिरे जिससे आग लग गई, लेकिन कोई भी हताहत की खबर नहीं है।
सुरक्षा कारणों से, इजरायल रक्षा बलों (IDF) ने निवासियों से विशेष चेतावनी प्रणालियों का इस्तेमाल करने का आग्रह किया है ताकि वे रॉकेट और मिसाइल हमलों के खतरों से समय पर अवगत हो सकें।
सरकार ने चेतावनी दी है कि रेडियो और टेलीविजन प्रसारण भले ही चुप रहेंगे, लेकिन रॉकेट हमले की चेतावनी सायरन जारी रहेंगे। इसके अलावा, होम फ्रंट कमांड की ऐप और सेलफोन के जरिए भी रॉकेट हमलों की चेतावनी दी जाएगी।
फौजी सेवाओं में बदलाव: उपवास की छूट
नए नियुक्त सेफार्डिक चीफ रब्बी डेविड योसेफ ने IDF के प्रोटोकॉल को दोहराते हुए कहा है कि जो सैनिक सक्रिय युद्ध में शामिल हैं, उन्हें योम किप्पुर पर उपवास रखने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि यह “स्पष्ट” है कि युद्धरत सैनिकों को न केवल उपवास करने से रोका गया है, बल्कि उन्हें सामान्य मात्रा में भोजन और पानी लेने की भी अनुमति दी गई है। यहूदी धर्म के नियमों के अनुसार, मानव जीवन की रक्षा धार्मिक नियमों से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
देशभर में पुलिस और अस्पताल हाई अलर्ट पर
हाल के आतंकवादी हमलों के कारण इजरायल पुलिस भी देशभर में हा अलर्ट पर है। अस्पतालों को भी आपातकालीन स्थिति में रखा गया था, और चिकित्सा दल किसी भी अप्रिय घटना के लिए तैयार है।
1973 के बाद यह पहली बार है जब इजरायल यॉम किप्पुर के दौरान युद्ध की स्थिति में है। उस साल मिस्र और सीरिया की सेनाओं ने इस पवित्र दिन पर इजराइल पर हमला किया था।
योम किप्पुर: प्रार्थना और आत्म-निरीक्षण का समय
धार्मिक और पारंपरिक यहूदियों के लिए 25 घंटे का उपवास और प्रार्थना का समय यरूशलेम में शाम 5:31 बजे और तेल अवीव में 5:51 बजे शुरू हुआ। यह उपवास शनिवार को क्रमशः शाम 6:46 बजे और 6:48 बजे समाप्त होगा।
योम किप्पुर की शुरुआत
योम किप्पुर यहूदी धर्म में सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इसे ‘प्रायश्चित का दिन’ (Day of Atonement) भी कहा जाता है।
यह दिन तिशरी महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में आता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य अपने पापों के लिए पश्चाताप करना, क्षमा मांगना और आत्म-निरीक्षण करना है।
योम किप्पुर पर 25 घंटे का उपवास रखा जाता है और लोग दिन भर प्रार्थनाओं में हिस्सा लेते हैं।
इस त्योहार का जिक्र तोराह (यहूदी धर्मग्रंथ) में भी मिलता है, जहा इसे आत्मा को शुद्ध करने का समय माना गया है। यह दिन पिछले साल के दौरान किए गए पापों के लिए क्षमा पाने और एक नए सिरे से जीवन शुरू करने का प्रतीक होता है।
यहूदी परंपरा के अनुसार, भगवान योम किप्पुर पर उन लोगों के लिए निर्णय करते हैं जो पश्चाताप करते हैं और एक नई शुरुआत के लिए तत्पर होते हैं।
योम किप्पुर युद्ध (1973)
योम किप्पुर युद्ध, जिसे अक्टूबर युद्ध या अरब-इजरायल युद्ध भी कहा जाता है, यह 6 अक्टूबर 1973 को शुरू हुआ था। यह युद्ध योम किप्पुर के दिन शुरू हुआ था, जब इजरायल पर मिस्र और सीरिया की सेनाओं ने अचानक हमला कर दिया था।
इस दिन इजरायल के लोग अपने उपवास और प्रार्थनाओं में व्यस्त थे, और देश को तैयार करने का समय नहीं मिल पाया था।
मिस्र ने सिनाई प्रायद्वीप और सीरिया ने गोलन हाइट्स के क्षेत्रों पर हमला किया था, जो 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में इजरायल ने अपने नियंत्रण में ले लिए थे। इस युद्ध के पीछे का मुख्य कारण इन क्षेत्रों को वापस पाने की कोशिश थी। प्रारंभ में, अरब सेनाओं को सफलता मिली, लेकिन इजरायल ने जल्दी ही अपनी सेना को पुनर्गठित किया और जवाबी हमला किया।
युद्ध के परिणाम
यह युद्ध 25 अक्टूबर 1973 को समाप्त हुआ। शुरुआत में अरब देशों को बढ़त मिली, लेकिन बाद में इजरायल ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली और युद्ध का अंत एक स्थिर स्थिति पर हुआ। इस युद्ध के परिणामस्वरूप इजरायल और अरब देशों के बीच शांति वार्ताओं की शुरुआत हुई, जिनमें 1979 में मिस्र और इजरायल के बीच कैम्प डेविड समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
योम किप्पुर युद्ध ने न केवल इजरायल और अरब देशों के संबंधों को प्रभावित किया, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका असर पड़ा। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और ऊर्जा संकट जैसी समस्याएं सामने आईं, और यह युद्ध विश्व राजनीति के नक्शे पर गहरा प्रभाव डालने वाला साबित हुआ।