प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।
माना जाता है कि जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तब भगवान धनवंतरी अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन धनतेरस के रूप में पूरे देशभर में मनाया जाता है।
धनतेरस धन और समृद्धि के उत्सव का प्रतीक है। इस पावन दिन माता लक्ष्मी के साथ ही भगवान धन्वंतरि और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है।
देवी लक्ष्मी धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी हैं। वहीं, भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के देवता हैं और स्वास्थ्य और उपचार से जुड़े हैं। ध
नतेरस पर प्यार और समृद्धि के संकेत के रूप में उपहारों का आदान-प्रदान करने की प्रथा है। इस दिन आभूषण, सोने या चांदी के सिक्के, तांबे, पीतल के बर्तन, नई गाड़ी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और घरेलू सामान खरीदने की परंपरा है।
धनतेरस पर पूजा-पाठ के अलावा शुभ वस्तुओं की खरीदारी का विधान है। इसी दिन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में बही-खाता भी बदला जाएगा।
धनतेरस के दिन सम संख्या (2, 4, 6, 8) की संख्या में झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन गेहूं के आटे का हलवा, धनिया और गुड़ का चूर्ण, बूंदी का लड्डू लक्ष्मी और धन्वंतरि जी को पूजा में अर्पण करने से अचल लक्ष्मी और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। दृग पंचांग के अनुसार इस दिन 29 अक्टूबर, 2024 को धनतेरस है।
धनतेरस पर क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन से धन्वंतरि प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था।
भगवान धन्वंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। माना जाता है कि इससे सौभाग्य, वैभव और स्वास्थ्य लाभ होता है।