प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
शारदीय नवरात्रि आरंभ हो चुके हैं। आज नवरात्रि की द्वितीया तिथि है।
इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि का आरंभ अश्विन माह की प्रतिपदा तिथि से होकर नवमी तिथि को समापन होता है।
वहीं, अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन किया जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों में नवदुर्गाओं की पूजा-आराधना के साथ कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है।
धार्मिक मान्यता है कि कन्या पूजन के बाद ही नवरात्रि की पूजा संपूर्ण मानी जाती है। कन्या पूजन के लिए 9 कन्या और एक बटुक बुलाने की परंपरा है।
कन्याओं को मां दुर्गा के 9 स्वरुपों का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि विधि-विधान से कन्या पूजन करने पर माता रानी अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखती हैं।
घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। आइए जानते हैं नवरात्रि में कन्या पूजन की विधि और महत्व…
कन्या पूजन विधि :
अष्टमी या नवमी तिथि पर कन्या पूजन के लिए कन्याओं और बटुक को निमंत्रण दें।
कन्या पूजन के लिए चना,पूरी,हलवा,खीर इत्यादि का प्रसाद तैयार करें और माता रानी को अर्पित करें।
घर में कन्याओं के आगमन पर सबसे पहले साफ पानी से उनके चरणों धोएं।
इसके बाद कन्याओं को आसन पर बिठाएं और उन्हें हलवा, पूरी और चना खिलाएं।
कन्याओं द्वार भोजन खत्म कर लेने पर उनका हाथ धुलवाएं और आसन पर बिठाएं।
इसके बाद उन्हें चंदन का टीका, रक्षासूत्र बांधकर चरण स्पर्श करें।
उन्हें क्षमतानुसार फल, कपड़े और दक्षिणा देकर विदाई करें।
कन्या पूजन क्यों महत्वपूर्ण है?
नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना विशेष शुभ फलदायी मानी गई है। इसके साथ ही नवरात्रि की अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या पूजन करने की भी विशेष परंपरा है।
कन्याओं को देवी का स्वरूप माना गया है। कन्या पूजन में 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की आयु की कन्याओं को घर बुलाकर कन्या पूजन किया जाता है।
धार्मिक मान्यता है की भक्तिभाव से माता रानी की पूजा करने और कन्या पूजन से मां अपने भक्तों पर हमेशा मेहरबान रहती है और सभी मनोकामनाएं पूरी करती है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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