भाजपा पहली बार 2014 में हरियाणा की सत्ता में अपने दम पर आई थी।
इससे पहले वह सरकार का हिस्सा रही थी, लेकिन अपने दम पर या खुद बड़ी पार्टी के तौर पर सरकार बनाने में 2014 में ही सफल रही।
इसके बाद 2019 में भी वह सबसे बड़ी पार्टी बनी और जेजेपी के साथ मिलकर सरकार का गठन किया।
इस सरकार ने भी 5 साल पूरे कर लिए हैं और अब 10 साल बाद भाजपा ऐंटी-इनकम्बैंसी फैक्टर झेल रही है। 2014 के बाद यह चुनाव उसके लिए सबसे कठिन माना जा रहा है, लेकिन इसके बाद भी जीटी रोड से लगते इलाकों में उसे मजबूत माना जा रहा है।
यही वजह है कि कांग्रेस की ओर से खुद राहुल गांधी मैदान में उतरे हैं। उन्होंने सोनीपत से लेकर अंबाला तक पड़ने वाले इस जीटी रोड बेल्ट पर फोकस किया है और यहां यात्रा निकाल रहे हैं।
कांग्रेस की विजय संकल्प यात्रा की शुरुआत उन्होंने यहीं से की और सीएम नायब सिंह सैनी के गढ़ नारायणगढ़ से यात्रा की शुरुआत की।
यह यात्रा कुरुक्षेत्र में समाप्त हुई और इस बीच 10 विधानसभा सीटों को कवर किया गया। इस क्षेत्र में कुल 23 सीटें आती हैं और चर्चा है कि 3 अक्टूबर को फिर से इसी इलाके में राहुल गांधी यात्रा पर निकल सकते हैं।
हरियाणा के इस जीटी रोड बेल्ट में सोनीपत में कांग्रेस मजबूत मानी जा रही है क्योंकि यहां जाटों की अच्छी खासी संख्या है। वहीं इसके बाद पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला में भाजपा को मजबूत माना जाता रहा है।
इसकी वजह यह है कि यहां जाटों की संख्या सेंट्रल हरियाणा के मुकाबले कम है। यह बेल्ट ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी, सैनी एवं अन्य ओबीसी जातियों के बाहुल्य वाली है।
इन समुदायों में भाजपा की पकड़ मानी जाती है। भाजपा ने 2014 में इस इलाके की 23 में से 21 सीटें जीत ली थी। इसके बाद 2019 में भी वह 12 जीती तो कांग्रेस 9 पर ही रह गई थी।
अहीरवाल बेल्ट से भी है भाजपा को बड़ी उम्मीद
जीटी रोड बेल्ट की तरह ही भाजपा को अहीरवाल क्षेत्र से भी उम्मीद है। यह क्षेत्र गुरुग्राम, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और भिवानी वाला है।
यहां यादवों की संख्या अच्छी खासी है तो ब्राह्मणों की भी सही तादाद है। कांग्रेस में जाटों का रुझान बढ़ रहा है तो ध्रुवीकरण की स्थिति में अन्य जातियां इस बेल्ट की भाजपा के साथ जा सकती है।
इसके लिए पार्टी के स्तर पर रणनीति भी बन रही है। इस बेल्ट में कुल 12 सीटें आती हैं।