प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है।
एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस पावन दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना का जाती है।
हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धार्मिक मान्यता है कि इंदिरा एकादशी व्रत के प्रताप से पितरों को यमलोक में यातनाएं नहीं सहनी पड़ती उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
इस दिन व्रत रखकर एकादशी का श्राद्ध और श्रीहरि की पूजा कथा करने से सात पीढ़ियों के पितर पाप मुक्त हो जाते हैं। नरक में गए हुए पितरों का उद्धार हो जाता है।
इस दिन विशेष तौर पर भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम की पूजा की जाती है। एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित होता है।
आइए आज जानते हैं इस दिन चावल का सेवन क्यों नहीं करना चाहिए…
धार्मिक कारण
एक पौराणिक कथा के अनुसार मां के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर त्याग दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया उस दिन एकादशी तिथि थी।
ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेधा चावल और जौ के रूप में उत्पन्न हुए। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित होता है।
वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक तत्वों के अनुसार, चावल में जल तत्व की मात्रा काफी अधिक होती है। वहीं जल पर भी चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है।
चावल का सेवन करने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है। जिसकी वजह से मन विचलित और चंचल हो जाता है। मन के चंचल होने पर व्रत के नियमों का पालन नहीं हो पाता है, इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित होता है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।